सबहीं बिधि सब बात अटपटी कहत सयाने की सी।
अंग अंग प्रति स्याम बिराजत ज्यौ जल नाई सीसी।।
तुमहूँ कहत हमारे हित की, वैद रोग जौ पावै।
बिनु जाने उपचार करै तौ अधिकौ बिथा जनावै।
अपनी पीर समुझि तुम देखौ, तजै पुरुष रस बेलि।
‘सूर’ कहौ सुख क्यौ बिसरत है करी सरस रस केलि।। 182 ।।