सबको मिले सुबुद्धि, रहें सब सबके नित्य सुबन्धु सहर्ष।
पर-सुख-सुखी सभी हों, हर्षित नित्य देखकर पर-उत्कर्ष॥
दुखी-जनों के दुःख-हरण का बढ़ता रहे नित्य उत्साह।
सहज समर्पित हों तन-मन-धन, बढ़ती रहे त्याग की चाह॥
बुझे कलह की आग जगत् में, हो शीतल सुप्रीति-विस्तार।
अनाचार अविचार मिटें सब, भ्रष्टाचार-असद् व्यवहार॥
‘राजनीति’ हो धर्मनियन्त्रिंत, हो ‘धन’-’काम’ धर्मसंयुक्त।
प्रभु-पद-पंकज-प्रीति लक्ष्य हो, हो जीवन वासना-विमुक्त॥
जीवमात्र में आत्मभाव हो, मिटें क्रूरता, हिंसा-पाप।
सब में मैत्री-करुणा हो, कोई न किसी को दे संताप॥
सभी सदा ही मंगलमय हों, त्रिविध तापका हो परिहार।