सदा सुखमई सहज अति, नित आनंद-बिभोर।
पै पिय-सुख हित दुखित ह्वै, करहिं सु-चिंता घोर॥
रहहिं नित्य निर्भय सहज, कबहूँ होहिं न भीत।
एकाकी अभिसार में नीरव गावहिं गीत॥
कबहुँ अकारन मानि भय, सहज सुकंपित गात।
जाय छिपहिं पिय-भुजनि में बिह्वल अँग कसवात॥
पिय कौ पीतबसन निरखि, समुझि आपनौ रूप।
मिलहिं जाय तामें तुरत, सोभा अमित अनूप॥
कबहुँ जो मलयानिल बसन अँग उड़ाय लै जाय।
पिय पीतांबर तैं तुरत ढँकि अँग लेहिं दुराय॥
तरुन तमालनि तै लिपटि कनक-लतनि कौं देखि।
लिपटहिं स्याम तमाल सौं लता आपु ही लेखि॥