सजि श्रृंगार चलीं ब्रजनारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


सजि श्रृंगार चलीं ब्रजनारी। जुवतिनि भीर भाई अति भारी।।
जगमगात अंगनि-प्रति गहनौ। सबके भाव दरस-हरि लहनौ।।
इहिं मिस देखन कौं सब आईं। देखतिं इकटक रुप-कन्हाई।।
बै नहिं जानतिं देव-पुजाई। केवल स्यामहि सौं लौ लाई।।
को मग जात, कहाँ को बोलत। नंद-सुवन तैं चित नहि डोलत।।
सूर भजै हरि जो जिहि भाऊ। मिलत ताहि प्रभु तेहि सुभाऊ।।903।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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