सजन सुध ज्‍यूँ जाणे त्‍यूँ लीजै हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन


राग पूरिया कल्‍याण


सजन सुध ज्‍यूँ जाणे त्‍यूँ लीजै हो ।। टेक ।।
तुम बिन मोरे और न कोई, क्रिया रावरी कीजै हो ।
दिन नहिं भूख रैण नहिं निंदरा, यूं तन पलपल छीजै हो ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, मिल बिछड़न मत कीजै हो ।।107।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सजन = प्रियतम। ज्यूँ जाणे ज्यूँ = जैसे समझें वैसे, जैसे हो वैसे, सभी प्रकार। रावरी = आपकी, अपनी। निन्दरा = निन्द्रा, नींद। पल-पल = बराबर। छीजै = दुबला पतला होता जाता है। बिछड़न = बिछोह, वियोग।

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