सजनी येई हैं गोपाल गुसाईं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


(सजनी) येई हैं गोपाल गुसाई।
नद महर के ढोटा, जिनकी, सुनियत बहुत बडाई।।
यह सुरूप नैननि भरि देखौ, बडे भाग निधि पाई।
चद चकोर, मेघ चातक लो, अवलोकौ मन लाई।।
सुदर स्याम सुदेस पीटपट, चदन चर्चित कीन्हे।
नटवर वेष धरे मन मोहन, कध दसनगज लीन्हे।।
नूपुर चारु चरन, कटि किकिनि, वनमाला उर सोहै।
कर कंकन मरिग कठ मनोहर, जुवती गन मन मोहै।।
कुडल स्त्रवन, सरोज बिलोकनि, कुटिल अलक अलिमाल।
चंद बदन अँचवति जु अमीरस, धन्य धन्य व्रजबाल।।
चंद चकोर स्वाति चातक ज्यौ, अवलोकतिं सत भाए।
'सूरदास' प्रभु दुष्टविनासन, माधव मथुरा आए।।3062।।

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