सजनी कत यह बात दुरैहौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


सजनी कत यह बात दुरैहौं।।
ऐसी मोहिं कहै जनि कबहूँ, झूठे पर दुख पैहौं।
तो तैं प्रियतम और कौन है, जाके आगैं कैंहौं।।
मोकौं उचटाए कछु पैहै, बहुरि नाम नहिं लैहौं।
यह परतीति नहीं जिय तेरैं, सो कह तोहिं चुरैहौं।
सूर स्याम धौं कहा रहत हैं, काहे कौं तहँ जैहौं।।1704।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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