सखी री वह देखौ रथ जात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


सखी री वह देखौ रथ जात।
कमलनयन काँधे पर, न्यारौ पीत बसन फहरात।।
लये जात जब ओट अटनि की, बचनहीन कृत गात।
छिति परकंप, कनक कदली कहँ, मानौ पवन बिहात।।
मधु छँड़ाइ सुफलकसुत लै गए, ज्यौ माखी बिललात।
'सूर' सुरुप-नीर-दरसन बिनु, मनहु मीन जल जात।।2998।।

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