सखी री पूरनता हम जानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट


सखी री पूरनता हम जानी।
याहीं तै अनुमान करति है, पटपद से अगवानी।।
प्रथमहि गाइ ग्वाल सँग रहते, भए छाँछ के बानी।
अब तौ राजनीति सुनियत है, कुबिजा सी पटरानी।।
मन हरि लियौ वजाइ वाँसुरी, अब ह्वै बैठे ज्ञानी।
महा मल्ल मारत मन मोहन, काहे न संका आनी।।
अर्ध निसा व्रजनारि संग लै, बन बसि लीला ठानी।
‘सूरदास’ ये कलपति वनिता, कहैं कौन अब मानी।।4039।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः