सखी री पावस सैन चलान्यौ।
पायौ बीच इद्र अभिमानी, सूनौ गोकुल जान्यौ।।
दसहूँ दिसा सधूम देखियत, कंपति है अति देह।
मनो चलत चतुरग चम, नभ बाढ़ी है खुर खेह।।
बोलत मोर सैल द्रुम चढ़ि चढ़ि बग जु उड़त तरु डारै।
मनु सहिया फरहरा फिरावत, भाजत कहत पुकारै।।
गरजत गगन गयद गुजरत, दल दादुर दलकार।
‘सूर’ स्याम अपने या ब्रज की, लागत क्यौ न गुहार।। 3305।।