सखी री कठिन मानगढ टूट्यौ।
श्रीगुपाल बिहँसनि बल आतप, चल्यौ अतिहि गोलनि कौ जूट्यौ।।
करि प्रतिहार तज्यौ सुर गोपुर, तब कचुकी कोट सन फूट्यौ।
कामअग्नि उपजी उर अंतर, मौन सुभट कौ तब रन छूट्यौ।।
कुच लोचन दोउ लरे सौह ह्वै, भौहकमान कुटिलसर छूट्यौ।
विद्वाचारि गुपाल लाल की, 'सूरदास' तजि सर्वस लूट्यौ।।2702।।