सखि मिलि करौ कछुक उपाउ।
मार मारन चढयौ बिरहिनि, निदरि पायौ दाउ।।
हुतासन धुज जात उन्नत, चल्यौ हरि दिस बाउ।
कुसम-सर-रिपु-नंद-ब्राहन, हरषि हरषित गाउ।।
वारि-भव-सुत तासु भावरी अब न करिहौ काउ।
बार अब की प्रान प्रीतम, विजय सखा मिलाउ।।
रति विचारि जु मान कीन्हौ, सोउ वहि किन जाउ।
'सूर' सखी सुभाउ रहिहौ, सँग सिरोमनि राउ।।2085।।