सखा सहित गए माखन चोरी।
देख्यौ स्याम गवाच्छ-पंथ ह्वै, मथति एक दधि भोरी।
हेरि मथानो धरी माट तै, माखन हो उतरात।
आपुन भई कमोरी माँगन हरि पाई ह्याँ घात।
बैठे सखनि सहित घर सूनै, दधि माखन सब खाए।
छूछी छाँढ़ि मटुकिया दधि की, हँसि सब बाहिर आए।
आइ गई कर लिए कमोरी, घर तैं निकसे ग्वाल।
माखन कर, दधि मुख लपटानौ, देखि रही नँदलाल।
कहँ आए व्रज-बालक सँग लै, माखन मुख लपटान्यौ।
खेलत तैं उठि भज्यौ सखा यह, इहिं घर आइ छपान्यौ।
भुज गहि लियौ कान्ह एक बालक, निकसे ब्रज की खोरि।
सूरदास ठगि रही ग्वालिनी, मन हरि लियौ अँजोरि।।270।।