संजय द्वारा पांडवों की युद्ध विषयक तैयारी का वर्णन और धृतराष्ट्र का विलाप

महाभारत उद्योग पर्व में यानसंधि पर्व के अंतर्गत 57वें अध्याय में 'संजय द्वारा पांडवों की युद्ध विषयक तैयारी का वर्णन और धृतराष्ट्र के विलाप' की कथा हैं, जो इस प्रकार है[1]-

संजय द्वारा पाण्डवों की युद्ध विषयक तैयारी का वर्णन करना

धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा- तुमने वहाँ युधिष्ठिर की सहायता के लिये आये हुए किन-किन राजाओं को देखा था, जो पाण्डवों के हित के लिये मेरे पुत्र की सेना के साथ युद्ध करेंगे? संजय ने कहा- राजन! मैंने वहाँ देखा कि वृष्णि और अन्धकवंश के प्रधान पुरुष भगवान श्रीकृष्ण पधारे हुए हैं। वहाँ चेकितान और युयुधान सात्यकि भी उपस्थित हैं। अपने को पौरुषशाली वीर मानने वाले वे दोनों विख्या‍त महारथी अलग-अलग एक-एक अक्षौहिणी सेना के साथ पाण्डवों की सहायता के लिये आये हैं। पांचाल नरेश द्रुपद, धृष्टद्युम्न और सत्यजित आदि दस वीर पुत्रों के साथ शिखण्डी द्वारा सुरक्षित हो कवच आदि से सम्पूर्ण सैनिकों के शरीरों को आच्छादित करके उन सबकी एक अक्षौहिणी सेना के साथ युधिष्ठिर का मान बढा़ने के लिये वहाँ आये हुए हैं। राजा विराट अपने दो पुत्रों शंख और उत्तर को साथ लिये, सूर्यदत्त और मदिराक्ष आदि वीर भ्राताओं और अन्य पुत्रों के साथ एक अक्षौहिणी सेना से घिरे हुए कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर की सहायता के लिये उपस्थित हैं। जरासंध कुमार मगध नरेश सहदेव तथा [[धृष्ट]केतु|चेदिराज धृष्टाकेतु]] ये दोनों भी अलग-अलग एक-एक अक्षौहिणी सेना लेकर आये हैं। लाल रंग की ध्व जा वाले जो पांचों भाई केकय राजकुमार हैं, वे सभी एक अक्षौहिणी सेना के साथ पाण्डवोंकी सेवा में उपस्थित हुए हैं।

संजय बोले मैंने इन सबको इतनी सेनाओं के साथ वहाँ आया हुआ देखा है। ये लोग पाण्डावों के हित के लिये दुर्योधन की सेना के साथ युद्ध करेंगे। जो मनुष्यों , देवताओं, गन्धर्वों तथा असुरों की भी व्यूह-रचना-प्राणली को जानते हैं, वे महारथी धृष्ट्द्युम्न पाण्ड व पक्ष की सेना के सेनापति रहेंगे। राजन! भीष्म के वध का कार्य शिखण्डीत को सौंपा गया है। राजा विराट मत्स्यदेशीय योद्धाओं के साथ शिखण्डीच की सहायता के लिये उसका अनुसरण करेंगे। बलवान मद्रनरेश ज्येष्ठय पाण्डतव युधिष्ठिर के हिस्से में हैं, युधिष्ठिर ही उनके साथ युद्ध करेंगे। परंतु यह बंटवारा सुनकर कुछ लोग वहाँ बोल उठे थे कि ये दोनों तो हमें परस्पर समान शक्तिशाली नहीं जान पड़ते है। अपने सौ भाइयों तथा पुत्रों सहित दुर्योधन और पूर्व एवं दक्षिण दिशा के कौरव सैनिक भीमसेन के भाग में नियत किये गये हैं। वैकर्तन कर्ण, अश्वत्थामा, विकर्ण और सिंधुराज जयद्रथ ये सब अर्जुन के हिस्से में हैं। इनके सिवा और भी अपने को शूरवीर मानने वाले जो कोई नरेश इस भूमण्ड ल में अजेय माने जाते हैं, उन सबको कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपने भाग निश्चित किया है। पांच भाई केकय राजकुमार भी महान धनुर्धर हैं। वे समरांगण में अपने विरोधी केकय देशीय योद्धाओं को ही अपना भाग [2] मानकर युद्ध करेंगे। मालव, शाल्व तथा त्रिगर्त देश के सैनिक और संशप्तक सेना के दो प्रमुख वीर भी उन केकय राजकुमारों के ही भाग नियत किये गये हैं। दुर्योधन तथाक दु:शासन के सभी पुत्र और राजा बृहद्बल , सुभद्रानन्दन अभिमन्यु के हिस्से में हैं। भरतनन्दन! सुवर्णनिर्मित ध्वोजाओं से युक्त महाधनुर्धर द्रौपदी पुत्र भी धृष्टद्युम्नके साथ द्रोण पर आक्रमण करेंगे।

चेकितान द्वैरथ संग्राम में सोमदत्त के साथ युद्ध करना चाहते हैं। सात्यकि भोजवंशी कृतवर्मा के साथ युद्ध करने को उत्सुक हैं। महाराज! युद्ध में इन्द्र के समान पराक्रमी शूरवीर माद्रीनन्दन सहदेव ने आपके साले सुबलपुत्र शकुनि को अपने भाग में निश्चित किया है। उस धूर्त जुआरी शकुनि का पुत्र जो उलूक है तथा जो सारस्वत प्रदेश के सैनिक हैं, उन सबको माद्रीकुमार नकुल ने अपना भाग में नियत किया है। राजन! दूसरे भी जो-जो नरेश आपकी ओर से युद्ध में पदार्पण करेंगे, उन सब का भी नाम ले-लेकर पाण्डवों ने उन्हें अपने भाग में निश्चित किया है। इस प्रकार पाण्डवों की सेनाएं पृथक-पृथक भागों में बंटी हुई हैं। अब पुत्रों सहित आपका जो कर्तव्य हो, उसे अविलम्ब पूरा करें।[1]

धृतराष्ट्र का विलाप

संजय की बातें सुनकर धृतराष्ट्र बोले- संजय! समर भूमि के प्रमुख भाग में बलवान भीमसेन के साथ जिनका युद्ध होने वाला है, वे कपट पूर्ण जूआ खेलने वाले मेरे सभी मूर्ख पुत्र अब नहीं के बराबर हैं। भूमण्डल के समस्त राजाओं का वध करने के लिये मानो कालधर्मा यमराज ने उनका प्रोक्षण[3] किया है; अत: जैसे पतंग आग में गिरती हैं, वैसे ही ये सब नरेश गांडीव धनुष की आग में समा जायेंगे। मैं तो समझता हूँ जिनका हम लोगों के साथ वैर हो गया हैं, वे महात्मा पाण्डव समरांगण में हमारी विशाल सेना को अवश्य मार भगायेंगे। उनके द्वारा खदेड़ी हुई उस सेना का अनुसरण अथवा सहयोग कौन कर सकेगा? समस्त पाण्डाव अतिरथी शूरवीर, यशस्वी, प्रतापी, युद्ध विजयी तथा अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी हैं। संजय! युधिष्ठिर जिनके नेता हैं, भगवान मधुसूदन जिनके रक्षक हैं, पाण्डु्पुत्र अर्जुन और भीमसेन जिनके प्रमुख योद्धा हैं, नकुल, सहदेव, पृषत्वंशी धृष्टद्युम्न, सात्यकि, द्रुपद, धृष्टकेतु, सुकेतु, पांचालदेशीय उत्तमौजा, दुर्जय युधामन्यु, [[शिखण्डी[]], क्षत्रदेव, विराटकुमार उत्तर, काशि, चेदि तथा मत्स्यदेश के सैनिक, सृंजयवंशी क्षत्रिय, विराटकुमार बभ्रु तथा पांचालदेशीय प्रभद्रकगण जिनके पक्ष में युद्ध के लिये उद्यत हैं, जिनकी इच्छा के बिना देवराज इन्द्र भी इस पृथ्वीा का अपहरण नहीं कर सकते, जो वीर तथा रणधीर हैं, जो पर्वतों को भी विदीर्ण कर सकते हैं, जिनका प्रताप देवताओं के समान है तथा जो समस्त सदगुणों से सम्पन्न हैं, उन्हीं पाण्डवों के साथ मेरा दुष्ट पुत्र दुर्योधन मेरे चीखने-चिल्लाने पर भी युद्ध करना चाहता है।[4]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 57 श्लोक 1-20
  2. वध्या वैरी
  3. संस्कार
  4. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 57 श्लोक 21-41

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सेनोद्योग पर्व
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संजययान पर्व
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प्रजागर पर्व
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सनत्सुजात पर्व
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यानसंधि पर्व
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भगवद्यान पर्व
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सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव | पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश | कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण | दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश | कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना | युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन | दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक | दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक | युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक | बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान | रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन | धृतराष्ट्र और संजय का संवाद

उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना | पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना | पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर | पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना | धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति

रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन | कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद | भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन | पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा | पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन | भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन

अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण | अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना | अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग | अम्बा और शैखावत्य संवाद | होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप | अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप | अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह | परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप | परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना | परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना | परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध | भीष्म और परशुराम का युद्ध | भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति | भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति | अम्बा की कठोर तपस्या | अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश | अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण | शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप | हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना | द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन | शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना | शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति | स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप | भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय | भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन | अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना | कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान | पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान

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