सुदामा का सत्कारद्वारका में रहते हुए भगवान् श्रीकृष्ण ने अनेक लीलाएँ कीं। रुक्मिणी, सत्यभामा, मित्रविन्दा, कालिन्दी आदि प्रभु की आठ पटरानियाँ थीं। इसके अतिरिक्त भौमासुर के यहाँ कैद सोलह हजार युवातियों को मुक्त करके श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह किया। बड़े भइया बलराम का विवाह रेवती से हुआ। इस बीच पौण्ड्रक, शिशुपाल, शाल्व, जरासंध, दन्तवक्त्र, विदूरथ-जैसे दुष्टों का भी उद्धार भगवान् श्रीकृष्ण ने किया। पारिजात-हरण की लीला भी प्रभु के द्वारकावास के समय हुई। प्रभु-भक्त सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। गुरुदेव सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करते समय इनकी मित्रता भगवान् श्रीकृष्ण से हुई थी। शिक्षा पूरी करके सुदामा भी अपने घर चले गये थे। विवाह करके वे गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे थे। अपनी गरीबी से वे अत्यन्त खिन्न थे। एक दिन पत्नी की प्रेरणा से भक्त सुदामा द्वारका आये। सेवकों द्वारा सुदामा जी के आगमन का समाचार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण की खुशी का ठिकाना न रहा। दौड़कर वे आये। सुदामा जी को उन्होंने अँकवार में भर लिया तथा अपने सिंहासन पर बैठारक भगवान् स्वयं उनके चरण धुलने लगे। कुशल-क्षेम पूछकर भगवान् अपने मित्र की दीन-हीन दशा निहारने लगे। सुदामाजी की काँख में दबी पोटली की ओर प्रभु की दृष्टि गयी। वास्तव में सुदामा जी की पत्नी ने प्रभु को भेंट प्रदान करने के लिये चार मुट्ठी चिउड़ा दिया था, जिसे संकोचवश वे छिपा रहे थे। भगवान् श्रीकृष्ण ने झपट कर वह प्रेमोपहार ग्रहण कर लिया। अनेक प्रकार से सुदामा जी का सत्कार करके प्रभु ने उन्हें विदा किया। प्रभु के शरणागत हो जाने पर भला दुःख-दारिद्रय कैसे टिक सकते हैं? भक्त सुदामा वापस आकर अपनी झोंपड़ी ढूँढ़ने लगे। किन्तु वहाँ तो भव्य महल बन गया था। उनकी पत्नी महारानियों के-से ठाट-बाट में उनसे मिलीं। प्रभु की कृपा का यह चमत्कार देख सुदामा भाव विहोर हो गये। |
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