श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. प्रद्युम्न-हरण-शम्बर-मरण
चौदह वर्ष के होते-होते प्रद्युम्न समस्त श्रुति-शास्त्र एवं कलाओं में पारंगत हो चुके थे। उनको सब वेदांग एवं उपवेद सांगोपांग स-रहस्य अवगत हो गये और उनको प्रयुक्त करना आ गया। मायावती ने उन्हें अब असुर, दानव, गन्धर्व, किन्नरादि की विशेष में विद्यायें और उनकी मायाओं का प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया। किसी एक व्यक्ति में इतनी विद्या- इतने विभिन्न वर्ग की विशेषता सृष्टि में मिलना कठिन है जो मायावती ने सिखलायीं। उसे आश्चर्य नहीं था। उसके पति साक्षात श्रीहरि के आत्मज थे। एक बार जो कहकर या क्रिया से बतला देती थी उसका अनकहा- अशिक्षित भाग भी प्रद्युम्न स्वयं समझ लेते थे। बहुत प्रतीक्षा की थी उसने। उस दिन रात्रि के प्रथम प्रहर के बीत जाने पर दानवेन्द्र को भोजन कराके उसने अपना भली प्रकार श्रृंगार किया और प्रद्युम्न के शयन-कक्ष में पहुँची। 'यह क्या? क्या चेष्टा है आज यह तुम्हारी?' प्रद्युम्न ने काम शास्त्र की भी शिक्षा पायी थी। वे मायावती की आज की भंगी देखते ही चौंककर उठ बैठे- 'आज तो तुम कामिनी जैसे व्यवहार करने लगी हो। यह अधर्म तुम्हारे भीतर कहाँ से आया? मैं तो तुम्हारा.........।' मायावती ने झट से प्रद्युम्न के मुख पर हाथ रख दिया- 'आप साक्षात नारायण के पुत्र हैं और आपकी जननी द्वारिका में पता नहीं आपके लिये कितनी व्याकुल हो रही होंगी।' 'तुम कौन हो?' प्रद्युम्न ने गम्भीर होकर पूछा- 'मैं यहाँ दानवेंद्र शम्बर के यहाँ क्यों हूँ?' 'मैं सदा की आपके चरणों की दासी- आपकी अधिकृत पत्नी रति हूँ। युगों से आपके दर्शनों की प्यास लिये दानव की रसोइया बनने की विवश।' रो पड़ी मायावती- 'यह दानवेन्द्र शम्बर आपका जन्मजात शत्रु है। आप तो मकरध्वज मदन है। इसने जन्मते ही आपको द्वारिका से हरण करके समुद्र में फेंक दिया।' पूरी रात्रि प्रद्युम्न पूछते और सुनते रहे। मायावती ने उनके भगवान शंकर के द्वारा भस्म होने के बाद से अब तक की अपनी विपत्ति गाथा सुना दी रोते-रोते और द्वारिका में श्रीहरि के यहाँ प्रद्युम्न के जन्म, हरण, मत्स्य के उदर से उनके मिलने से लेकर अब तक की कथा भी सुना दी।' देवर्षि ने दया की मुझ अनाथ अबला पर और आकर मुझे आपका परिचय दिया। मैं जितनी सेवा कर सकती थी, मैंने की है। अब आप समर्थ हो चुके हैं। नारी का आश्रय पति होता है। मैं विपत्ति की मारी बहुत भटकी हूँ। किन्तु मेरा हृदय बहुत फट जाता है आपकी पूजनीया माता के दारुण दुःख का स्मरण करके। उनके पहिले पुत्र का इस शम्बर ने हरण कर लिया।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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