श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. प्रद्युम्न-हरण-शम्बर-मरण
जिसे भोजन सबसे प्रिय है, उसके लिये उत्तम रसोइया सबसे अधिक सम्मान्य होगा। मायावती के निरीक्षण में बने भोजन के सम्मुख दानव शम्बर को सब नीरस लगता था। फलतः वह कहीं भोजन के समय बाहर नहीं टिकता था। उसके लिये प्रवास करना बहुत अप्रिय कार्य हो गया। 'मायावती ने एक शिशु पा लिया है कहीं से।' शम्बर से उसके मन्त्री ने कहा था। अब मायावती से कुछ कहने-पूछने का साहस कौन करता। शम्बर के महामन्त्री तक अब उसके शिशु को प्रसन्न रखना चाहते थे; क्योंकि वे जानते थे कि उनके दानवेन्द्र मायावती के द्वारा बनवाये भोजनों के वश में हैं। शिशु बढ़ने लगा। वह अच्युत का अमित प्रभाव पुत्र-शैशव से ही असुर बालकों से उसकी कोई प्रीति नहीं थी। वह किसी से मिलना- किसी के अंक में जाना नहीं चाहता था। केवल मायावती के ही आसपास वह रहता था। 'माया!' शिशु ने बोलना प्रारम्भ किया। तभी से मायावती ने उसे अपना नाम रटा दिया। वह इसी नाम से उसे पुकारने लगा। बालक जैसे-जैसे बड़ा होता गया, एकान्तप्रिय होता गया। उसे नगर में सबसे ही जन्मजात अरुचि थी। शम्बर को देखते ही भाग खड़ा होता था। शम्बर ने रात्रि में हरण किया था शिशु का और समुद्र में फेंक दिया था। वह कैसे पहिचानता कि यह वही बालक है। रात्रि में फेंका दिन के प्रथम प्रहर में ही उसी के भवन में पहुँचकर पलने लगा था। अद्भुत प्रतिभा थी बालक की। मायावती स्वयं उसकी शिक्षिका-प्रशिक्षिका सब बन गयी थी। वह देवी थी। श्रुति-शास्त्र सब सिखला सकती थी और सब पढ़ाया उसने। उसे जो कुछ आता था, वह विद्यायें अपने स्वामी को दे दीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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