श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. प्रद्युम्न-हरण-शम्बर-मरण
‘पथिच्युतं तिष्ठति दिष्टरक्षितं गृहे स्थितं तद्विहितं विनश्यति।’[1] जिसकी मृत्यु नहीं है उसे कौन मार सकता है। शिशु रात्रि में आकाश से जल में गिरा। नीचे जल में विचरण करते समय एक महामत्स्य ने मुख खोलकर उसे ऊपर से ही मुख में ले लिया और निगल गया। लेकिन बड़े सवेरे ही समुद्री मछलियाँ पकड़ने वालों ने उसी स्थान पर अपना महाजाल डाला। वह महामत्स्य उनके जाल में आ गया। इतना भारी मत्स्य प्रथम उद्योग में ही मिल गया था। मछुओं ने जाल समेटा और नौकायें शम्बर के द्वीप के किनारे जा लगायीं। दानवेन्द्र शम्बर इतना बड़ा मत्स्य देखकर बहुत सन्तुष्ट हुआ। उसने मछुओं को भरपूर पुरस्कार दिया। महामत्स्य शम्बर के रसोई-गृह में भेजा गया। वह इतना भारी था कि सेवकों ने उसे भारी कुल्हाड़े से टुकड़े करने प्रारम्भ किये। मत्स्य के उदर से अत्यन्त सुन्दर श्याम-वर्ण जीवित शिशु निकल आया। वे सेवक शम्बर के भोजनालय की अध्यक्षा मायावती के समीप उस बच्चे को ले गये- 'यह अभी समुद्र से पकड़कर लाये गये महामत्स्य के उदर से निकला है।' 'इसे मेरे समीप छोड़ जाओ।' अत्यन्त सुन्दर शिशु देखकर मायावती ने उसे उठा लिया- 'महाराज दानवेन्द्र को मत्स्य बहुत प्रिय है। उस मत्स्य के खण्ड ठीक-ठीक स्वच्छ करो। भली प्रकार वे भूने जायें।' 'बहुत भारी मत्स्य है।' सेवकों ने कहा- 'दानवेन्द्र आज भरपेट खा सकेंगे उसे।' 'देवी। इतने ध्यान से क्या देख रही हो?' सहसा देवर्षि नारद गगन से उतरे और पूछा उन्होंने। उन अव्याहत गति के लिये कोई स्थान अगम्य तो है नहीं। 'यह शिशु मिला है अभी।' मायावती ने देवर्षि के चरणों में शीघ्रतापूर्वक उठकर मस्तक रखा। 'पुष्पधन्वा नित्य नारायणांश है और वही नीलसुन्दर वर्ण है इनका।' देवर्षि ने परिचय दे दिया। प्रद्युम्न की जन्म-कथा और शम्बर द्वारा उनका हरण सुनाया- 'आज ही रात्रि में दानव इन्हें द्वारिका से उठाकर समुद्र में फेंक आया है। तुम इन्हीं की प्रतीक्षा कर रही थीं युगों से और आने पर अपने स्वामी को भी नहीं पहिचानती हो? भगवान शंकर ने मदन-दहन के अनन्तर रति को वरदान दे दिया था। सृष्टिकर्ता पितामह ने पति-वियुक्ता दुखिया रति पर दया करके उसे बतला दिया था कि शम्बर के यहाँ उसे अपने पति का दर्शन होगा। रति ने नाम बदल लिया, वह मायावती बन गयी। और असुर के यहाँ आश्रय लिया उसने। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत पुराण 7-2-40
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