श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
16. हंस-डिम्भक-मोक्ष
'तुम कटु भाषियों को जीवित देखना महान दुःखद है; किन्तु दूतत्त्व ऐसे दुःख देता ही है।' सात्यकि ने सरोष कहा- 'मुझे मेरे स्वामी ने दूत न बनाया होता तो तुम दोनों का मस्तक मैं द्वारिका ले जाता; किन्तु अब परसों तुम्हारा वध करने मैं श्रीद्वारिकाधीश के साथ पुष्कर पहुँच रहा हूँ।' सात्यकि राजसभा से उठे और अपने अश्व पर बैठकर द्वारिका चल पड़े। उनका सन्देश पाकर यादव सेना शीघ्र सज्जित हुई और पुष्कर हंस-डिम्भक से पहिले पहुँच गयी। वे दोनों भी सेना लेकर आये। दोनों भाइयों के साथ दो-दो भूतनायक और देवराज को भी संग्राम में पराजित करने वाला पर्वताकार दानव विचक्र आ गया। हंस-डिम्भक ने अनेक नरेशों को सन्देश भेजा था। मगधराज जरासन्ध ने सन्देश की उपेक्षा कर दी। उसने हंस-डिम्भक द्वारा दुर्वासा के अपमान की बात सुन ली थी और तभी कह दिया था -'ब्राह्मणों तथा तपस्वियों का अपमान करने वालों से मैं कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता।' यादवों से द्वेष रखने वाले अन्य नरेश सेना लेकर आ गये थे। युद्धारम्भ ही अद्भुत ढंग से हुआ। श्रीकृष्णचन्द्र सहसा रथ से कूदे और भगवान शंकर के जो दो-दो भूतनायक हंस-डिम्भक से साथ थे, उन्हें पकड़कर घुमाकर फेंकने लगे। प्रत्येक को उन्होंने घुमाकर ऐसा फेंका कि वे कैलास पर जाकर गिरे और मूर्च्छित हो गये। दिन भर भयंकर युद्ध होता रहा। डिम्भक से सात्यकि और हंस से श्रीबलराम जी का युद्ध हो रहा था। दोनों ओर से दिव्यास्त्र का प्रयोग एवं दिव्यास्त्रों से उनका प्रतिकार होता रहा। श्रीकृष्णचन्द्र को अवसर मिल गया था। उनके शारंग से मृत्युवर्षा हो रही थी। सहायक राजा मारे गये अथवा आहत होकर युद्धभूमि से भाग गये। हंस-डिम्भक केवल बचे थे जब रात्रि के प्रारम्भ में युद्ध-विरमित हुआ। रात्रि में दोनों भाई रथ में बैठकर वहाँ से भाग गये; किन्तु अरुणोदय में ही श्रीकृष्ण-बलराम के रथ दोनों का पीछा करते दौड़ पड़े। यमुना तट पर पहुँचते-पहुँचते हंस-डिम्भक को युद्ध के लिये विवश होना पड़ा। डिम्भक श्रीबलराम से और हंस श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगा। दोनों को ही अब प्राण-रक्षा के लिये युद्ध करना था। दोनों दिव्यास्त्रों के युद्ध पर उतर आये थे; किन्तु दिव्यास्त्र ऐसे कौन-से जो श्रीद्वारिकाधीश या संकर्षण के त्रोण में न हों। आग्नेयास्त्र के लिये वारुणास्त्र, वायव्यास्त्र के लिये माहेन्द्र, माहेश्वरास्त्र के लिये रौद्रास्त्र दोनों भाइयों के पास थे और उन्होंने प्रयोग किये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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