श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
10. महारानी मित्रविन्दा
वह अब बालिका नहीं है। अब किशोरी है और उसके विवाह की चर्चा चल पड़ी है। उसका स्वयंवर होगा। वे आवेंगे और नेत्रबन्द करके वह उनके गले में वरमाला डाल देगी। मित्रविन्दा का स्वप्न है- अब वह उनके स्वप्न ही देखती रहती है। कितने मधुर-मादक हैं ये स्वप्न। अवन्ती के शासन की संचालिका हैं राजमाता राजाधिदेवी। पति ने जब संग्राम में वीरगति प्राप्त की, मित्रविन्दा शिशु थी। विन्द और अनुविन्द दोनों बालक थे। राजाधिदेवी सती नहीं हो सकीं। उन्होंने शासन-सूत्र सम्हाल लिया। अपने बालकों का पालन किया। पिता महाराजाधिराज पाण्डु की सहायता में खेत रहे थे। पाण्डु के सिंहासन पर धृतराष्ट्र आये तो अवन्ती का शासन उनका भक्त बना रहा। अब विन्द और अनुविन्द दुर्योधन वशवर्ती हो गये हैं। उसका अनुगमन करने में गर्व का अनुभव करते हैं। 'महाराजाधिराज सुयोधन के साथ सम्बन्ध हो जाये।' विन्द और अनुविन्द का यह सबसे बड़ा स्वप्न है; किन्तु अवन्ती छोटा राज्य है। कौरव नरेश के समाज में ये बहुत छोटे सभासद हैं। बहिन का पाणि-ग्रहण प्रस्ताव करें और महाराज दुर्योधन अस्वीकार कर दें? अपमान-उपहास के भय से प्रस्ताव करने का साहस नहीं हुआ। 'महाराज सुयोधन ने बहिन के स्वयंवर में आना स्वीकार कर लिया है।' विन्द और अनुविन्द ने हस्तिनापुर में अपने महाराज से यह चर्चा की थी। एक बहाना था प्रस्ताव करने का- 'हम कुछ दिन की अनुपस्थिति के लिये क्षमा चाहते हैं। बहिन के स्वयंवर का आयोजन करना है।' दुर्योधन ने हँसकर कह दिया- 'कब स्वयंवर है? मैं आऊँगा स्वयंवर सभा में।' 'आप अवश्य पधारें।' साग्रह आमन्त्रित कर दिया। लगा कि वरदान मिल गया। लौटकर माता को बड़े उल्लास से सुनाया। दोनों भाई निश्चिंत हो गये। स्वयंवर के बहाने उनकी बहिन अब कौरव महारानी बन सकेगी। राजमाता ने भी स्वयंवर का विरोध नहीं किया। स्वयंवर करना है तो दूसरे राजकुमारों को भी आमन्त्रित करना ही था। द्वारिका समाचार भेजने के पक्ष में दोनों नहीं थे; किन्तु माता को मना भी कैसे करते कि वे अपने भाई को ही सूचना न भेजें। स्वयंवर के लिये राजकुमार आने लगे। अनेक देशों के राजकुमार आये। शिप्रा के तट पर उनके शिविरों का नगर बस गया। महाराज दुर्योधन पधारे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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