श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
8. कलंक-मोचन
द्वारिका समुद्र से घिरा दुर्ग था। द्वार से, सेतु के द्वारा ही उससे बाहर जाया जा सकता था। घोड़ी को दौड़ाते हुए खुले दुर्ग-द्वार से शतधन्वा द्वार रक्षकों के सम्मुख से निकल गया; किन्तु द्वार रक्षकों की दृष्टि बचाकर तो नहीं जा सकता था। एक ही रथ में बैठे श्रीकृष्ण-बलराम उसे ढूँढ़ने निकल चुके थे। द्वार रक्षकों ने सूचना दे दी। गरुड़ध्वज रथ शतधन्वा के पीछे दौड़ चला। शतधन्वा कुछ पहिले चला था। पर्याप्त दूर निकल गयी थी उसकी घोड़ी। रथ उसका पीछा करता बढ़ा आ रहा था। घोड़ी सौ योजन दौड़ सकती थी। पशु भी स्वामी का संकट समझते हैं। प्राण पर खेलकर पूरे वेग से वह स्वामिभक्ता पशु दौड़ती चली गयी; किन्तु उसकी शक्ति की सीमा थी। सौ योजन दूर मिथिला के वाहयोपवन में पहुँचते-पहुँचते वह गिर पड़ी ठोकर खाकर और गिरते ही उसका श्वास समाप्त हो गया। अत्यधिक श्रम से उसका हृदय फट गया। घोड़ी के गिरते ही शतधन्वा कूदा और पैदल भागा। श्रीकृष्णचन्द्र ने यह देखा। अग्रज से बोले- 'आर्य! यह रथ के लिये अगम्य संकीर्ण पथ से भाग रहा है। आप यहीं रुकें थोड़े क्षण।' श्रीकृष्णचन्द्र रथ से कूदे और शतधन्वा के पीछे दौड़े। शतधन्वा प्राण बचाने को दौड़ रहा था; किन्तु कहाँ तक दौड़ता? श्रीकृष्णचन्द्र ने समीप पहुँचकर उसके मस्तक पर पीछे से मुष्टि-प्रहार किया और मस्तक फट गया। उसके वस्त्र एवं शरीर को भली प्रकार देखकर श्रीकृष्ण लौटे। बड़े भाई से उन्होंने कहा- 'शतधन्वा के समीप तो मणि नहीं मिली। यह व्यर्थ मृत्यु का ग्रास बना।' 'शतधन्वा के समीप मणि नहीं मिली तो वह और किसी को दे आया होगा।' श्री बलराम ने रथ में बैठे-बैठे समीप का प्रदेश देख लिया था। सारथि से वहाँ का परिचय पूछ लिया था। वे रथ से उतर पड़े- 'तुम इस रथ से लौटो और द्वारिका में उसका पता लगाओ। मिथिला नरेश- मेरे बहुत प्रिय हैं। यहाँ तक आकर उनसे मिले बिना मैं लौटना नहीं चाहता।' श्रीसंकर्षण रूक्ष हो उठे थे। उन्हें मणि के संबंध में श्रीकृष्णचन्द्र पर सन्देह हो गया था- 'धन्य मायादेवी। तुम्हारी लीला विलक्षण है।' छोटे भाई को उन्होंने कह दिया- 'मैं यहाँ से मिथिलाधिप बहुलाश्व के पास किसी से सन्देश भेज दूंगा।' रथ को मिथिला ले जाने पर बहुलाश्व का प्रेम दोनों भाइयों को आने में बाधा बनता और द्वारिका में सत्राजित का शव अभी तक अन्तेष्टि के लिये पड़ा था। श्रीकृष्णचन्द्र चुपचाप लौट आये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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