श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
1. अपनी बात
3.श्रीकृष्णचन्द्र की पटरानियों की संख्या कहीं 10, कहीं 9, कहीं 8 है। रानियाँ भी भौमासुर के यहाँ से कहीं 16,000 लायी गयी कही गयी हैं, कहीं 16,100- इनमें श्रीमद्भागवत की संख्या, मान लेना ठीक लगा है। 5.‘हरिवंश’ पुराण के वर्णन का एक उदाहरण-
‘नरकवध के अनन्तर एक दिन देवी रुक्मिणी ने प्रार्थना की कि देवेश्वर मैं आपसे एक पुत्र चाहती हूँ। इस प्रार्थना पर श्रीकृष्ण कैलास गये तप करने और शिव ने वरदान दिया कि अनंग उनका पुत्र बने। तब प्रद्युम्न की उत्पत्ति हुई। स्पष्ट है कि विष्णु-पर्व में नरकासुर की उपस्थिति रुक्मी-वध तक मानना प्रक्षिप्त है; क्योंकि पौत्र का विवाह करने के बाद श्रीकृष्ण ने सोलह हजार एक सौ विवाह किये यह मानना भविष्य-पर्व के प्रसंग में देवी रुक्मिणी की प्रार्थना के अवसर को प्रक्षिप्त मानना संगत नहीं है। दोनों में से एक को तो प्रक्षिप्त मानना ही पड़ेगा।
इस वियोग काल में प्रतिवर्ष एक दिन के मिलन की बात है और इस पर मिलन के अवसरों का वर्णन भी गर्ग-संहिता में है। श्रीमद्भागवत में- ‘यर्ह्म्बुजाक्षापसमार भो भवान् में ‘मधून्’ के द्वारा श्रीकृष्ण के बीच-बीच में व्रज जाने का संकेत है, ऐसा कुछ विद्वान मानते हैं। इस वर्णन के अनुसार श्रीकृष्णचन्द्र की धरा पर की आयु के 111 वर्ष बीतने पर यह ग्रहण के समय का मिलन हुआ। श्रीकृष्णचन्द्र धराधाम में 125 वर्ष रहे हैं। महाभारत युद्ध के बाद तीस वर्ष तक। इसका तात्पर्य है कि महाभारत युद्ध के 16 वर्ष पीछे यह ग्रहण में मिलन हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 1.11.9
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