श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
51. नृगोद्धार
अश्व साथ थे ही। नगर से सुदृढ़ रस्सियाँ और चमड़े की रस्सियाँ भी वे ले आये और कूप में उतरकर उस प्राणी को इस प्रकार बाँधा कि खींचकर निकालने में उसे कम-से-कम पीड़ा हो। कुमारों ने बहुत प्रयत्न किया किन्तु वह कृकलास स्वयं तनिक भी निकलने का प्रयत्न नहीं करता था और कुमार उसे खींच नहीं पा रहे थे। वह सम्भवत: क्षुधा से असमर्थ हो चुका था। जब उन लोगों से वह नहीं निकल सका तो उन्होंने जाकर अपने पिता से कहा– 'संकरे कूप में एक असाधारण वृहत कृकलास गिर पड़ा है। स्वयं हिल भी नहीं पाता। उसे बहुत लोग लगाकर खींचें इतना स्थान भी नहीं है। आप उस पीड़ित प्राणी को निकलवा दें।' कोई अन्य मार्ग न हो तो कूप में एक पार्श्व से दूर तक भूमि खोदकर उसके निकालने की व्यवस्था कुमारों के ध्यान में थी किन्तु इससे बाह्योपवन के उस सघन भाग में अनेकों वृक्ष काटने पड़ते। वहाँ की शोभा नष्ट होती। श्रीकृष्णचन्द्र उठे और कूप के समीप आये। उन्होंने झुककर बायें हाथ से उस कृकलास को पकड़ा, रस्सियों के बन्धन से छुड़वाकर और कूप से बाहर निकाल दिया। कूप से बाहर आते ही सबके देखते-देखते वह कृकलास तो अत्यन्त तेजस्वी, रत्नालंकार सज्जित बहुत सुन्दर देवता बन गया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। 'आप निश्चय कोई देव श्रेष्ठ हैं किन्तु इस हीन योनि में कैसे पहुँच गये थे?' श्रीकृष्णचन्द्र ने उस देवता से पूछा। 'परमपुरुष! पुरुषोत्तम! सर्वेश्वरेश्वर! आप सर्वज्ञ हैं। काल आपके ज्ञान का आवरण बनने में असमर्थ है। आप सब जानते हैं किन्तु आपकी आज्ञा है तो उसका पालन करता हूँ।' अपनी सम्पर्ण कथा सुनाकर गद्गद कंठ नृग ने कहा- 'मेरा कोई धर्म मुझे आपके इन श्रीचरणों तक पहुँचा ही नहीं सकता था। धर्म के परम प्रभु! आप धर्म के द्वारा प्राप्य नहीं है, यह जानता हूँ। आप अपनी अहैतु की कृपा से ही पधारे हैं।' 'अब मुझे देव देह मिला। देवलोक जाना पड़ रहा है।' नृग के स्वर में उत्साह नहीं था- 'क्योंकि मैंने सब दान-धर्म उत्तम लोक पाने के लिए ही किये थे किन्तु करुणाधाम! इतनी कृपा करो कि मैं जहाँ भी, जिस योनि में भी रहूँ, मेरा चित्त आपके चरणों में लगा रहे।' अभीष्ठ वरदान मिला नृग को। वे स्वर्ग चले गये। नगर लौटते श्रीकृष्ण ने पुत्रों से कहा- 'तुमने अनजाने में हुए, ब्राह्मण के स्वत्वापहरण का दुष्फल देख लिया, अतः इस ओर से विप्रों के अपराध से सदा बचते रहो।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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