श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
27. वज्रनाभ-वध
वज्रनाभ को तो अमरावती पर अधिकार करके त्रिभुवन पर शासन करने की प्रबल उत्कण्ठा थी। वह पता लगा रहा था। जैसे ही महर्षि कश्यप का यज्ञ पूरा हुआ, उनके पास जा पहुँचा। वज्रनाभ को पिता की बात गले उतरे- ऐसी नहीं थी। वह रुष्ट होकर लौटा- 'मैं इन्द्र को और उसके सहायकों को देख लूँगा।' लौटते ही वज्रनाभ ने स्वर्ग पर आक्रमण की योजना बनायी। हंस वज्रपुर का सब वर्णन इन्द्र और श्रीकृष्ण पहुँचा ही रहे थे। हंसों के द्वारा प्रद्युम्न को पिता का आदेश मिला- 'अब वज्रनाभ वध करो। मैं द्वारिका में अपने पौत्र के साथ पुत्र-पुत्रवधू का स्वागत करने को उत्सुक हूँ। तुम्हारी माता नवीन पुत्रवधू तथा पौत्र से मिलने को अकुलाने लगी हैं।' संयोग तो श्रीकृष्ण के संकल्प बनाया करते हैं। प्रभावती, चन्द्रावती, गुणवती के तीनों कुमार छत पर क्रीड़ा करते देख लिये गये। अन्तःपुर के रक्षकों ने दानवेन्द्र से निवेदन किया- 'कन्यान्तःपुर में तीन नवीन बालक देख देखे गये हैं।' 'उन्हें बन्दी बनाओ।' वज्रनाभ ने आदेश दे दिया। असुर सेना ने अन्तःपुर पर घेरा डाल दिया। वज्रनाभ स्वयं भाई के साथ शस्त्र लेकर भवन में प्रविष्ट हुआ। प्रद्युम्न ने प्रभावती से पूछा- 'तुम्हारे पिता और चाचा युद्धोद्यत आ रहे हैं। हम क्या करें? प्रभावती ने प्रद्युम्न की कटि में दिव्य खण्ड बाँधा। उनका तिलक किया। चन्द्रावती और गुणवती ने भी इसी प्रकार वीरपत्नी की भाँति पतियों को युद्ध के लिए प्रेरणा दी। इन्द्र तो प्रतीक्षा में ही थे। उनकी सहायता लेकर शक्र-सुत जयन्त और देवसमर्थक, ब्राह्मण-श्रेष्ठ प्रवर, ऐरावत को लिये आ पहुँचे। इन्द्र का रथ प्रद्युम्न लिए आ गया। अमरावती पर आक्रमण की योजना धरी रह गयी। वज्रनाभ के अपने अभेद्य वज्रपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। पहिले ही दिन के युद्ध में दैत्य-दानव सेना, समाप्त हो गयी। दूसरे दिन गरुड़ारूढ़ श्रीकृष्णचन्द्र पहुँचे तो प्रद्युम्न को लगा कि वे पिता का आदेश पूर्ण करने में असमर्थ रहे हैं। उन्होंने एक ही दिव्यास्त्र से सुनाभ और वज्रनाभ दोनों को समाप्त कर दिया। केवल इनका छोटा भाई निकुम्भ भाग गया। वह भागकर षट्पुर में जा छिपा। वज्रनाभ का राज्य चार भागों में विभक्त कर दिया गया। प्रभावती, चन्द्रावती, गुणवती के पुत्रों के साथ जयन्त के पुत्र विजय को समान भाग मिला। सम्पत्ति का भी समान विभाजन करके श्रीकृष्णचन्द्र सबको लेकर द्वारिका लौटे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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