श्रीराधा माधव, श्रीमाधव राधा-दोनों एक स्वरूप।
एक तत्त्व सच्चिदानन्दमय एक भाव-रस परम अनूप॥
दुग्ध-धवलता, अग्रि-दाहि का, रवि-आभा सब नित्य अभिन्न।
करते तदपि भाव-रस-पूरित लीला ललित पृथक्-परिछिन्न॥
राधा प्रकृति-परा, निर्लिप्ता, कृष्णस्वरूपा, कृष्णाराम।
कृष्णात्मा, कृष्णानुरागरूपा, कृष्णप्राणा अभिराम॥
कृष्णसुखा कृष्णारूप केवल करतीं लीला अविराम।
प्रेमाधिष्ठात्री देवी, परमाद्या, रासेश्वरी ललाम॥
परमाह्लादरूपणी, धन्या, मान्या, उच्चादर्श महान।
कृष्ण-नित्य-आनन्दोदधि को भी करतीं आनन्द-प्रदान॥
सकल रूप-गुण-गर्व-हारिणी, कृष्णचित्तहारिणि निष्काम।
नित्य-अतुल-निज-गौरवपूर्णा, नित गौरव-विस्मृता तमाम॥
कृष्णस्तुता, कृष्ण-आराध्या, कृष्ण-वक्ष-वासिनी उदार।
कृष्णाराधनपरा, कर रहीं तत्सुखार्थ ही नित्य विहार॥