श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
भगवत्प्राप्ति
अध्याय 8 : श्लोक-9
परमेश्वर के रूप में वे परमाणु में तथा लघुतम के भी हृदय में प्रवेश कर सकते हैं और परमात्मा रूप में उसका नियन्त्रण करते हैं। इतना लघु होते हुए भी वे सर्वव्यापी हैं और सबों का पालन करने वाले हैं। उनके द्वारा इन लोकों का धारण होता है। प्रायः हम आश्चर्य करते हैं कि ये विशाल लोक किस प्रकार वायु में तैर रहे हैं। यहाँ यह बताया गया है कि परमेश्वर अपनी अचिन्त्य शक्ति द्वारा इन समस्त विशाल लोकों तथा आकाशगंगाओं को धारण किए हुए हैं। इस प्रसंग में अचिन्त्य शब्द अत्यन्त सार्थक है। ईश्वर की शक्ति हमारी कल्पना या विचार शक्ति के परे है, इसीलिए अचिन्त्य कहलाती है। इस बात का खंडन कौन कर सकता है? वे भौतिक जगत में व्याप्त हैं फिर भी इससे परे हैं। हम इसी भौतिक जगत को ठीक-ठीक नहीं समझ पाते जो आध्यात्मिक जगत की तुलना में नगण्य है तो फिर हम कैसे जान सकते हैं कि इसके परे क्या है? अचिन्त्य का अर्थ है इस भौतिक जगत से परे जिसे हमारा तर्क, नीतिशास्त्र तथा दार्शनिक चिन्तन छू नहीं पाता और जो अकल्पनीय है। अतः बुद्धिमान मनुष्यों को चाहिए कि व्यर्थ के तर्कों तथा चिन्तन से दूर रहकर वेदों, भगवद्गीता तथा भागवत जैसे शास्त्रों में जो कुछ कहा गया है, उसे स्वीकार कर लें और उनके द्वारा सुनिश्चित किए गए नियमों का पालन करें। इससे ज्ञान प्राप्त हो सकेगा।