श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 176

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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दिव्य ज्ञान
अध्याय 4 : श्लोक-1

इस समय कलियुग के केवल 5,000 वर्ष व्यतीत हुए हैं जबकि इसकी पूर्णायु 4,32,000 वर्ष है। इसके पूर्व द्वापरयुग[1] था और इसके भी पूरब त्रेतायुग [2]था। इस प्रकार लगभग 20,05,000 वर्ष पूर्व मनु ने अपने शिष्य तथा पुत्र इक्ष्वाकु से जो इस पृथ्वी के राजा थे, श्रीमद्भगवद्गीता कही। वर्तमान मनु की आयु लगभग 30,53,00,000 वर्ष अनुमानित की जाती है, जिसमें से 12,04,00,000 वर्ष बीत चुके हैं। यह मानते हुए कि मनु के जन्म के पूर्व भगवान ने अपने शिष्य सूर्यदेव विवस्वान को गीता सुनाई, मोटा अनुमान यह है कि गीता कम से कम 12,04,00,000 वर्ष पहले कही गई और मानव समाज में यह 20 लाख वर्षों से विद्यमान रही। इसे भगवान ने लगभग 5,000 वर्ष पूर्व अर्जुन से पुनः कहा। गीता के अनुसार ही तथा इसके वक्ता भगवान कृष्ण के कथन के अनुसार यह गीता के इतिहास का मोटा अनुमान है। सूर्यदेव विवस्वान को इसीलिए गीता सुनाई गई क्योंकि वह क्षत्रिय थे और उन समस्त क्षत्रियों के जनक है जो सूर्यवंशी हैं। चूँकि भगवद्गीता वेदों के ही समान है क्योंकि इसे श्रीभगवान ने कहा था, अतः यः ज्ञान अपौरुषेय है। चूँकि वैदिक आदेशों को यथारूप में बिना किसी मानवीय विवेचना के स्वीकार किया जाना चाहिए। फलत: गीता को भी किसी सांसारिक विवेचना के बिना स्वीकार किया जाना चाहिये। संसारी तार्किकजन अपनी-अपनी विधि से गीता के विषय में चिन्तन कर सकते है, किन्तु यह यथारूप भगवद्गीता नहीं है। अतः भगवद्गीता को गुरु-परम्परा से यथारूप में ग्रहण करना चाहिए। यहाँ पर यह वर्णन हुआ है कि भगवान् ने इसे सूर्यदेव से कहा, सूर्यदेव ने अपने पुत्र मनु से और मनु से अपने पुत्र इक्ष्वाकु से कहा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 8,00,000 वर्ष
  2. 12,00,000 वर्ष

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