श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 152

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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कर्मयोग
अध्याय 3 : श्लोक-24

हमें उनके उपदेशों का पालन करना चाहिए, किन्तु किसी भी समय हमें उनका अनुकरण नहीं करना है। श्री मद् भागवत में [1] इसकी पुष्टि की गई है –

नैतत्समाचरेज्जातु मनसापि ह्यनीश्वरः।
विनश्यत्याचरन् मौढयाद्यथारुद्रोऽब्धिजं विषम्।
इश्वराणां वचः सत्यं तथैवाचरितं क्वचित्।
तेषां यत् स्ववचोयुक्तं बद्धिमांस्तत् समाचरेत॥

“मनुष्य को भगवान् तथा उनके द्वारा शक्तिप्रदत्त सेवकों के उपदेशों का मात्र पालन करना चाहिए। उनके उपदेश हमारे लिए अच्छे हैं और कोई भी बुद्धिमान पुरुष बताई गई विधि से उनको कर्मान्वित करेगा। फिर भी मनुष्य को सावधान रहना चाहिए कि वह उनके कार्यों का अनुकरण न करे। उसे शिव जी के अनुकरण में विष का समुद्र नहीं पी लेना चाहिए।”

हमें सदैव इश्वरों की या सूर्य तथा चन्द्रमा की गतियों को वास्तव में नियंत्रित कर सकने वालों की स्थिति को श्रेष्ठ मानना चाहिए। ऐसी शक्ति के बिना कोई भी सर्वशक्तिमान इश्वरों का अनुकरण नहीं कर सकता। शिव जी ने सागर तक के विष का पान कर लिया, किन्तु यदि कोई सामान्य व्यक्ति विष की एक बूंद भी पीने का यत्न करेगा तो वह मर जाएगा। शिवजी के अनेक छद्मभक्त हैं जो गाँजा तथा ऐसी ही अन्य मादक वस्तुओं का सेवन करते रहते हैं। किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि इस प्रकार शिव जी का अनुकरण करके वे अपनी मृत्यु को निकट बुला रहे हैं। इसी प्रकार भगवान् कृष्ण के भी अनेक छद्मभक्त हैं जो भगवान की रासलीला या प्रेमनृत्य का अनुकरण करना चाहते हैं, किन्तु भूल जाते हैं कि वे गोवर्धन पर्वत को धारण नहीं कर सकते। अतः सबसे अच्छा तो यही होगा कि लोग शक्तिमान का अनुकरण न करके केवल उनके उपदेशों का पालन करें। न ही बिना योग्यता के किसी को उनका स्थान ग्रहण करने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसे अनेक ईश्वर के “अवतार” हैं जिनमे भगवान् की शक्ति नहीं होती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 10.33.30-31

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