श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 274

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
ग्यारहवाँ अध्याय

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो
नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं
न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥31॥

मुझे बतलाइये कि उग्ररूप धारी कौन हैं? आपको नमस्कार हो। देवश्रेष्ठ! आप प्रसन्न होइये। आप आदिपुरुष को मैं जानना चाहता हूँ, क्योंकि आपकी प्रवृत्ति को मैं नहीं जानता हूँ।। 31।।

अतिघोररूपः को भवान्? किं कर्तु प्रवृत्तः? इति भवन्तं ज्ञातुम् इच्छामि। तव अभिप्रेतां प्रवृत्तिं न जानामि। एतद् आख्याहि मे; नमोऽस्तु ते देवतर प्रसीद-नमः ते अस्तु सर्वेश्वर एवं कर्तुम् अनेन अभिप्रायेण इदं संहर्तृरूपम् आविष्कृतम् इति उक्त्वा प्रसन्नरूपश्य भव।। 31।।

मैं आपको जानना चाहता हूँ कि अत्यन्त घोररूपधारी आप कौन हैं और क्या करने की उद्यत हुए हैं? आपकी अभिलषित प्रवृत्ति को मैं नहीं जानता, अतः यह आत मुझको बतलाइये। देव- श्रेष्ठ! सर्वेश्वर! आपको नमस्कार हो। आप प्रसन्न होइये। तात्पर्य यह है कि अमुक अभिप्राय से अमुक कार्य करने के लिये यह संहारक रूप प्रकट किया है, यह सब बतलाकर प्रसन्नस्वरूप हो जाइये।। 31।।

आश्रितवात्सल्यातिरेकेण विश्वैश्वर्य दर्शयतो भवतो घोररूपाविष्कारे कः अभिप्रायः इति पृष्टो भगवान् पार्थसारथिः स्वाभिप्रायम् आह- पार्थाेद्योगेन विना अपि धार्तराष्ट्रप्रमुखम् अशेषं राजलोकं निहन्तुम् अहम् एव प्रवृत्तः, इति ज्ञापनाय मम घोररूपाविष्कारः, तज्ज्ञापनं च पार्थम् उद्योजयितुम् इति-

आश्रित-वत्सलता की अधिकता से विश्वरूप ऐश्वर्य का दशर्न कराने वाले आप परमेश्वर का इस घोर रूप के प्रकट करने में क्या अभिप्राय है? इस प्रकार अर्जुन के द्वारा पूछे जाने पर पार्थसारथि भगवान् श्रीकृष्ण अपना अभिप्राय बतलाते हुए बोले कि अर्जुन के उद्योग न करने पर भी मैं धृतराष्ट्र पुत्रों के सहित सम्पूर्ण राजा लोगों को मारने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ। यही जानने के लिये मेरे घोर रूप का आविष्कार हुआ है और यह जानना भी पार्थ को उद्योग में लगाने के लिये ही है-

श्रीभगवानुवाच-
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत: ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: ॥32॥

श्रीभगवान बोले- मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ। लोकों का संहार करने के लिये यहाँ प्रवृत्त हुआ हूँ। तेरे बिना भी, ये सब योद्धा, जो प्रतिपक्षी सेना में स्थित हैं, नहीं बचेंगे।। 32।।

कलयति गणयति इति कालः, सर्वेषां धार्तराष्ट्रप्रमुखानां राजलोकानम् आयुरवसानं गणयन् अहं तत्क्षयकृत् घोररूपेण प्रवृद्धो राज लोकान् समाहर्तुम् आभिमुख्येन संहर्तुम् इह प्रवृत्तः अस्मि। अतो मत्संकल्पाद् एव त्वाम् ऋते अपि त्वदुद्योगम् ऋतेऽपि एते धार्तराष्ट्रप्रमुखाः तव प्रत्यनीकेषु ये अवस्थिता योधाः, ते सर्वे न भविष्यन्ति विनङ्क्षषयन्ति।। 32।।

जो कलना-गणना करे उसका नाम काल है, सो सभी धृतराष्ट्र के पुत्रादि राजा लोगों के आयु के अन्त समय की गणना कर- उनका नाश करने वाला मैं घोररूप से बहुत बढ़ा हुआ काल हूँ, यहाँ इन राजा लोगों का सब ओर से संहार करने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ। इसलिये तेरे बिना भी- तेरे उद्योग न करने पर भी- तेरे उद्योग न करने पर भी मेरे संकल्प से ही ये तेरी प्रति पक्षी सेना में स्थित धृतराष्ट्र के पुत्रों सहित जो योद्धा लोग हैं, वे सब-के-सब (कोई) नहीं बचेंगे-नष्ट हो जायँगे।। 32।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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