श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
ग्यारहवाँ अध्याय
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा:
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥28॥
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतग्ङा:
विशन्ति नाशाय समृद्धवेगा: ।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका-
स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगा: ॥29॥
जैसे नदियों के बहुत-से जलप्रवाह समुद्र की ओर मुख किये दौड़े जाते हैं, वैसे ही ये नरलोक के वीर आपके सब ओर से प्रज्वलित मुखों में घुसे जाते हैं। जैसे पतंग अपने नाश के लिये पूरे वेग से प्रज्वलित अग्निज्वाला में प्रवेश करते हैं वैसे ही ये लोग भी पूरे वेग से अपने नाश के लिये आपके मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।। 28-29।।
एते राजलोका बहवो नदीनाम् अम्बुप्रवाहाः समुद्रम् इव प्रदीप्तज्वलनम् इव च शलभाः तव वक्त्राणि अभिविज्वलन्ति स्वयम् एव त्वरमाणा आत्मनाशाय विशन्ति।। 28-29।।
ये सब राजा लोग जैसे बहुत-सी नदियों के जलप्रवाह समुद्र में गिरते हैं और जैसे पतंग जलती हुई अग्नि में प्रवेश करते हैं, वैसे ही अपने-आप दौड़ते हुए अपने नाश के लिये आपके अत्यन्त प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।। 28-29।।
लेलिह्यसे ग्रसमान: समन्ता-
ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि: ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं
भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो ॥30॥
विष्णो! आप अपने प्रज्वलित मुखों से सब ओर से सभी लोगों को अपना ग्रास बनाते हुए (उनके रुधिर से भीगे अपने ओठों को) जीभ से बारम्बार चाट रहे हैं। और आपकी उग्र प्रभा (किरण) अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को परिपूर्ण करके तपा रही है।। 30।।
राजलोकान् समग्रान् ज्वलद्भि वदनैः ग्रसमानः कोपवेगेन तद्रुधिरावसिक्तम् ओष्ठपुटादिकं लेलिह्यसे पुनः पुनः लेहनं करोषि। तव अतिघोरा भासो रश्मयः तेजोभिः स्वकीयैः प्रकाशैः जगत् समग्रम् आपूर्य प्रतपन्ति।। 30।।
आप उन समस्त राजा लोगों को क्रोध के वेग से प्रज्वलित मुखों के द्वारा अपना ग्रास बनाकर उनके रक्त से भीगे होठ आदि को बार-बार चाट रहे हैं। आपकी अत्यन्त घोर प्रभा- किरणें अपने तेज- अपने प्रकाश के द्वारा समस्त जगत् को परिपूर्ण करके प्रखर रूप से तप रही हैं।। 30।।
दर्शयात्मानमव्ययम्’[1] इति तव ऐश्वर्य निरकुंश साक्षात्कर्तु प्रार्थितेन भवता निरंकुशम् ऐश्वर्य दर्शयता अतिघोररूपम् इदम् आविष्कृतम्-
‘अपने अविनाशी स्वरूप को दिखलाइये’ इस प्रकार आपके निरंकुश (सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र) ऐश्वर्य का साक्षात् करने की इच्छा से मेरे द्वारा प्रार्थना किये जाने पर आपने निरंकुश ऐश्वर्य का दर्शन कराते हुए इस अत्यन्त घोर रूप को प्रकट किया है, (इसलिये)-
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