श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 272

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
ग्यारहवाँ अध्याय

दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि
दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि ।
दिशो न जाने न लभे च शर्म
प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥25॥

आपके प्रलयानल के समान और विकराल दाढ़ों वाले मुखों को देखकर न मुझे दिशाएँ सूझती हैं और न शान्ति ही पाता हूँ। देवेश! जगन्निवास! आप प्रसन्न होइये।। 25।।

युगान्तकालानलवत् सर्वसंहारे प्रवृत्तानि अतिघोराणि तव मुखानि दृष्टा दिशो न जाने सुखं च न लभे। देवेश जगतां निवास ब्रह्मादीनाम् ईश्वराणाम् अपि परममहेश्वर मां प्रति प्रसन्नो भव; यथा अहं प्रकृतिं गतो भवामि, तथा कुरु इत्यर्थः।। 25।।

प्रलयकालीन अग्रि के समान सबका संहार करने में प्रवृत्त आपके अत्यन्त घोर मुखों को देखकर मैं दिशाओं को नहीं जान रहा हूँ और मुझे सुख भी नहीं मिल रहा है। हे देवेश! जगत् के आधार! ब्रह्मादि ईश्वरों के भी परम महान् ईश्वर! मुझपर प्रसन्न होइये- जिस प्रकार मैं प्रकृतिस्थ हो सकूँ, वैसा ही कीजिये।। 25।।

एवं सर्वस्य जगतः स्वायत्तस्थितिप्रवृत्तित्वं दर्शयन् पार्थसारथी राजवेषच्छद्मना अवस्थितानां धार्त्तराष्ट्राणां यौधिष्ठिरेषु अनुप्रविष्टानां च असुरांशाना संहारेण भूभारावतरणं स्वमनीषितं स्वेन एव करिष्यमाणं पार्थाय दर्शयामास। स च पार्थो भगवतः स्नष्टृत्वादिकं सवैश्चर्य साक्षात्कृत्य तस्मिन् एव भगवति सर्वात्मनि धार्तराष्ट्रादीनाम् उपसंहारम् अनागतम् अपि तत्प्रसादलब्धेन दिव्येन चक्षुषा पश्यन् इदं प्रावोच-

इस प्रकार समस्त जगत् की स्थिति और प्रवृत्ति अपने अधीन दिखलाकर पार्थ के सारथि श्रीकृष्ण ने कपट से राजवेष धारण करके स्थित हुए धृतराष्ट्र के पक्षवाले असुर-अंशी राजाओं का और युधिष्ठिर के पक्ष में घुसे हुए असुर अंशी राजाओं का संहार करके पृथ्वी के भार-हरणरूपी अपने अभिलषित कार्य को अपने ही द्वारा किया जाने वाला अर्जुन को दिखलाया और वह अर्जुन भगवान् की कृपा से प्राप्त दिव्य नेत्रों के द्वारा श्रीभगवान् के सृष्टिरचरनादि सारे ऐश्वर्य को प्रत्यक्ष देखकर तथा उस उसके आत्मरूप भगवान् में ही भविष्य में होने वाले धृतराष्ट्र के पुत्र आदि के संहार को भी देखकर यह बोला-

अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्रा:
सर्वे सहैवावनिपालसंघै: ।
भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ
सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ॥26॥
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति
दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु
संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमांग्ङै: ॥27॥

ये धृतराष्ट्र के समस्त पुत्र भी सभी राजाओं के समूहों के साथ तथा भीष्म, द्रोण और वह सूतपुत्र (कर्ण) भी हमारे मुख्य योद्धाओं के साथ बड़ी जल्दी से आपके विकराल और भयंकर दाढ़ों वाले मुखों में घुसे चले जाते हैं। कितने ही तो चूर्ण हुए सिरों के साथ दाँतों के दराजों में लगे दिखायी देते हैं।। 26-27।।

अमी धृतराष्ट्रस्य पुत्राः दुर्योधनादयः सर्वे भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रः कर्णश्च तत्पक्षीयैः अवनिपालसमूहैः सर्वेः अस्मदीयैः अपि कैश्चिद् योधमुख्यैः सह त्वरमाणा दंष्ट्राकरालानि भयानकानि तव वक्त्राणि विनाशय विशन्ति। तत्र केचित् चूर्णितैः उत्तमांगेः दशनान्तरेषु विलग्नाः सन्दृश्यन्ते।। 26-27।।

वे सब धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधनादि तथा, भीष्म, द्रोण और सूतपुत्र कर्ण, उनके पक्षवाले समस्त पृथ्वीपतियों के समूहों सहित और हमारे पक्ष के भी कितने ही मुख्य योद्धाओं सहित बड़ी जल्दी से आपके जो दाढ़ों के कारण विकराल एवं भयंकर हैं ऐसे मुखों में नष्ट होने के लिये घुसे चले जा रहे हैं। उनमें से कितने ही, जिनके मस्तक चूर्ण हो गये हैं, आपके दाँतों के अन्तरालों में लगे दिखायी दे रहे हैं।। 26-27।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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