श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 254

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय

अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्व: समासिकस्य च ।
अहमेवाक्षय: कालो धाताहं विश्वतोमुख: ॥33॥

अक्षरों में अकार और समासों के समूह में द्वन्द्व नामक समास हूँ। मैं ही अक्षय काल हूँ, मैं ही चारों ओर मुखवाला विधाता (ब्रह्मा) हूँ।। 33।।

अक्षराणां मध्ये ‘अकारो वै सर्वा वाक्’ [1] इति श्रुतिसिद्धः, सर्ववर्णानां प्रकृतिः अकारः अहम्, सामासिकः समास समूहः, तस्य मध्ये द्वन्द्वसमासः अहम्; स हि उभयपदार्थप्रधानत्वेन उत्कृष्टः। कलामुहूर्तादिमयः अक्षयः कालः अहम् एव; सर्वस्य स्रष्टा हिरण्यगर्भः चतुर्मुखः अहम्।। 33।।

सब वर्णों में ‘अकार’ जो कि ‘अकार ही सब वाणी है’ इस श्रुति से प्रसिद्ध सब वर्णों का कारण है, वह मैं हूँ; समास-समूह का नाम सामासिक है; उसमें द्वन्द्व नामक समास मैं हूँ; क्योंकि उसमें दोनों पदों के अर्थ प्रधान होते हैं, इसलिये वह श्रेष्ठ है। कला मुहूर्त्तादि विभाग वाला अविनाशी काल मैं ही हूँ। सबका सृजन करने वाला चतुर्मुख ब्रह्मा मैं हूँ।। 33।।

मृत्यु : सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् ।
कीर्ति: श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा ॥34॥

सबका हरण करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों की उत्पत्ति रूपी कर्म मैं हूँ। नारियों में श्री, कीर्ति, वाणी, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ।। 34।।

सर्वप्राणहरः मृत्युः च अहम्; उत्पत्स्यमानानाम् उद्भवाख्यं कर्म च अहम्, नारीणां श्रीः अहं कीर्तिः च अहं वाक् च अहं स्मृतिः च अहं मेधा च अहं धृति च अहं क्षमा च अहम्।। 34।।

सबके प्राणों का हरण करने वाला मृत्यु भी मैं ही हूँ; उत्पन्न होने वालों का उत्पत्तिरूप कर्म भी मैं ही हूँ, स्त्रियों में श्री मैं हूँ, कीर्ति मैं हूँ, वाणी मैं हूँ, स्मृति मैं हूँ, मेधा मैं हूँ, धृति मैं हूँ और क्षमा भी मैं हूँ।। 34।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐ0 पू0 3/6

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः