श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 245

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय


वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतय: ।
यार्भिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥16॥

जिन विभूतियों से इन लोकों को व्याप्त करके आप स्थित हैं, उन अपनी दिव्य विभूतियों का सम्पूर्णता से वर्णन करने में आप ही समर्थ हैं।। 16।।

दिव्याः त्वदसाधारण्यो विभूतयो याः ताः त्वम् एव अशेषेण वक्तुम् अर्हसि त्वम् एव व्यञ्जय इत्यर्थः। याभिः अनन्ताभिः विभूतिभिः यैः नियमनविशेषैः युक्त इमान् लोकान् त्वं नियन्तृत्वेन व्याप्य तिष्ठसि।। 16।।

आपकी जो दिव्य-असाधारण विभूतियाँ हैं, जिन अनन्त विभूतियों से नियन्त्रण करने योग्य विशेष शक्तियों से युक्त होकर आप इन सब लोकों को नियन्तारूप से व्याप्त करके स्थित हो रहे हैं, ऐसी आपकी जो दिव्य असाधारण विभूतियाँ हैं, उन सबका सम्पूर्णता से वर्णन आप ही कर सकते हैं- अभिप्राय यह कि आप ही उनको प्रकाशित कीजिये।। 16।।

किमर्थ तत्प्रकाशनम्? इति अपेक्षायाम् आह-

उनका प्रकाशन किसलिये किया जाय? इस पर कहते हैं-

कथं विद्यामहं योगी त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥17॥

भगवन्! मैं भक्तियोगी सदा आपका चिन्तन करता हुआ आपको कैसे जानूँ? और आप मुझसे किन-किन भावों में चिन्तन किये जाने के योग्य हैं।। 17।।

अहं योगी भक्तियोगनिष्ठः सन् भक्तत्या त्वां सदा परिचिन्तयन् चिन्तयितुं प्रवृत्तः चिन्तनीयं त्वां परिपूर्णैश्वर्यादि कल्याणगुण्गणं कथं विद्याम् पूर्वोक्तबुद्धिज्ञानादिभावव्यतिरिक्तेषु अनुक्तेषु केषु केषु च भावेषु मया नियन्तृत्वेन चिन्त्यः असि।। 17।।

मैं योगी- भक्तियोग में निष्ठ होकर भक्तिपूर्वक सदा आपका चिन्तन करता हुआ- चिन्तन में प्रवृत्त हुआ, चिन्तन करने योग्य एवं परिपूर्ण ऐश्वर्य आदि कल्याणमय गुणगणों से युक्त आप परमेश्वर को कैसे जानूँ? पूर्वोक्त बुद्धि और ज्ञान आदि भावों के अतिरिक्त जिनका वर्णन नहीं किया गया, ऐसे कौन-कौन से भावों में मुझे आपका नियन्तारूप से चिन्तन करना चाहिये?।। 17।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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