श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवा: ॥14॥
केशव! आप जो कुछ मुझसे कहते हैं, वह सब मैं सत्य (तत्त्व) मानता हूँ; क्योंकि आपकी व्यक्ति को हे भगवन्! न देवता जानते हैं और न दानव ।। 14।।
अतः सर्वम् एतद् यथावस्थितवस्तु कथनं मन्ये न प्रशंसाद्यभिप्रायम्। यद् मां प्रति अनन्यसाधारणम् अनवधिकातिशयं स्वाभाविकं तव ऐश्वर्य कल्याणगुणगणानन्त्यं च वदसि। अतो भगवन् निरतिशयज्ञानशक्ति बलैश्चर्यवीर्यतेजसां निधे ते व्यक्तिं व्यञ्जप्रकारं न हि परिमितज्ञाना देवा दानवाः च विदुः।। 14।।
अतएव यह सब, जो कि आप मुझे दूसरों की समानता से रहित अपार अतिशय अपने स्वाभाविक ऐश्वर्य और कल्याणमय गुणगणों की अनन्तता बतला रहे हैं, इसे मैं यथार्थ वस्तु स्थिति का वर्णन मानता हूँ। प्रशंसादि के लिये कही हुई बात नहीं मानता। इसलिये हे भगवन्! हे निरतिशय ज्ञान, शक्ति, बल, ऐश्वर्य वीर्य और तेज के भण्डार! आपकी व्यक्ति को प्रकट होने की रीति को सीमित ज्ञान वाले होने के कारण देवता और दानवगण भी नहीं जानते ।। 14।।
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥15॥
पुरुषोत्तम! भूतभावन! भूतेश! देवदेव! जगन्नाथ! आप स्वयं ही अपने ज्ञान से अपने-आपको जानते हैं।। 15।।
हे पुरुषोत्तम आत्मना आत्मानं त्वं स्वयम् एव स्वेन एव ज्ञानेन वेत्थ। भूतभावन सर्वेषां भूतानाम् उत्पादयितः, भूतेश सर्वेषां भूतानां नियन्तः, देवदेव दैवतानाम् अपि परमदैवत, यथा मनुष्यमृगपक्षिसरीसृपादीन् सौन्दर्यसौशील्यादिकल्याणगुणगणैः दैवतानि अतीत्य वर्तन्ते तथा तानि सर्वाणि दैवतानि अपि तैः तैः गुणैः अतीत्य वर्तमान, जगत्पते जगत्स्वामिन् ।। 15।।
हे पुरुषोत्तम! अपने-आपको आप स्वयं ही अपने ज्ञान के द्वारा जानते हैं। भूतभावन-समस्त भूतों को उत्पन्न करने वाले। भूतेश-समस्त प्राणियोंके नियन्ता! देवदेव-देवों के भी परमदेव! जिस प्रकार मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट पतंगादि से सौन्दर्य, सौशील्य आदि कल्याणमय गुणगणों में देवता बढ़े हुए होते हैं, वैसे ही आप उन सब देवताओं से भी उन सब गुणों में सबसे बढ़े हुए (परम श्रेष्ठ) हैं। जगत्पते! जगन्नाथ!।। 15।।
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