श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 243

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय

एष नारायणः श्रीमान् क्षीरार्णव निकेतनः। नागपर्यंङ्कमुत्सुज्य ह्यागतो मथुरां पुरीम्।।’ पुण्या द्वारवती तत्र यत्रास्ते मधुसूदनः। साक्षाद्देवः पुराणोऽसौ स हि धर्मः सनातनः।। ये च वेदविदो विप्रा ये चाध्यात्मविदो जनाः। ते वदन्ति महात्मानं कृष्णं धर्म सनातनम्।। पवित्राणां हि गोविन्दः पवित्रं परमुच्यते। पुण्यानामपि पुण्योअसौ मंगलानां च मंगलम्।। त्रैलोक्ये पुण्डरीकाक्षो देवदेवः सनातनः। आस्ते हरिरचिन्त्यात्मा तत्रैव मधुसूदनः।।’ [1] तथा ‘यत्र नारायणो देवः परमात्मा सनातनः। तत्र कृत्स्नं जगत्पार्थ तीर्था न्यायतनानि च।। तत्पुण्यं तत्परं ब्रह्म तत्तीर्थ तत्तपोवनम्।’’तत्र देवर्षयः सिद्धाः सर्वे चैव तपोधनाः।। आदिदेवो महायोगी यत्रास्ते मधुसूदनः। पुण्यानामपि तत्पुण्यं माभूत्ते संशयोऽत्र वै।।’ [2]‘कृष्ण एव हि लोकानामुत्पत्तिरपि चाप्ययः। कृष्णस्य हि कृते भूतमिदं विश्वं चराचरम्।।’ [3] इति।

जैसे कि ‘क्षीरसागर में निवास करने वाले यह साक्षात् श्रीमान् नारायण शेषशय्या को छोड़कर यहाँ मथुरापुरी में आ गये हैं।’ ‘वहाँ परम पवित्र द्वारावती पुरी है, जहाँ भगवान् भगवान् मधुसूदन निवास करते हैं, वे देव साक्षात् पुराणपुरुष हैं, वे ही सनातन धर्म हैं। जो वेद के जानने वाले ब्राह्मण हैं और जो अध्यायत्म के जानने वाले पुरुष हैं, वे महात्मा श्रीकृष्ण को सनातन धर्मरूप बतलाते हैं। गोविन्द भगवान् समस्त पवित्रों के भी परम पवित्र कहे जाते हैं। ये सब पुण्यों के भी पुण्य हैं और मंगलों के भी मंगल हैं। देवों के देव त्रिभुवनव्यापी सनातन भगवान् कमलनेत्र अचिन्त्यस्वरूप श्रीहरि मधुसूदन उस द्वारका में ही रहते हैं।’ तथा ‘पार्थ! जहाँ सनातन परमात्मा नारायण देव हैं वही समस्त जगत् और सम्पूर्ण तीर्थस्थान विद्यमान हैं। वही परमपुण्य, वही परमब्रह्म, वही तीर्थ और वही तपोवन है तथा वहीं सब देवर्षि, सिद्ध और तपोधन पुरुष रहते हैं। जहाँ महायोगी भगवान् आदिदेव मधुसूदन विराजते हैं, वह स्थान पुण्यों का भी पुण्य है, इसमें तुझे जरा भी सन्देह नहीं होना चाहिये।’ ‘वे श्रीकृष्ण ही सब लोकों की उत्पत्ति और प्रलय के स्थान हैं। यह सम्पूर्ण चराचर जगत् श्रीकृष्ण के लिये ही प्रकट हुआ है।’

तथा स्वयम् एव ब्रवीषि च ‘भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।’ [4]इत्यादिना ‘अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्व प्रवर्तते’ [5] इत्यन्तेन।। 12-13।।

तथा आप स्वयं भी ‘भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।’ यहाँ से लेकर ‘अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्व प्रवर्तते’ यहाँ तक (यही बात) मुझसे कहते हैं।। 12-13।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महा0 वन0 88/24-28
  2. महा0 वन0 90/28-32
  3. महा0 सभा0 38/23
  4. 7/4
  5. 10/8

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः