श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 242

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय

तथा च परमं पवित्रं परमं पावनं स्मर्तुः अशेषकल्मपाश्लेषकरं विनाशकरं च। ‘यथा पुष्करपलाश आपो न श्लिष्यन्त एवमेवंविदि पापं कर्म न श्लिष्यते’ [1] ‘तद्यथेषीका तुलमग्नौ प्रोतं प्रदूयेतैव हास्य सर्वे पाप्मानः प्रदूयन्ते’ [2]। ‘नारायणः परं ब्रह्म तत्त्वं नारायणः परः। नारायणः परं ज्योतिरात्मा नारायणः परः।।’ [3] इति हि श्रुतयो वदन्ति।

ऐसे ही श्रुतियाँ आपको परम पवित्र स्मरण करने वाले के समस्त पाप-सम्बन्ध का अभाव और पापों का नाश करने वाला परमपावन कहती हैं- ‘जैसे कमल के पत्ते में जल लिप्त नहीं होता, इसी तरह ऐसे ज्ञानी में पापकर्म लिप्त नहीं होते, ‘जैसे सरंकडे की सींक के अग्रभाग में स्थित रूई अग्नि में डालते ही भस्म हो जाती है, वैसे ही इसके समस्त पाप भस्म हो जाते हैं।’‘नारायण परमब्रह्म है, नारायण परमतत्त्व है, नारायण परम ज्योति है और नारायण परम आत्मा है।’ इस प्रकार श्रुतियाँ कहती हैं।

ऋषयः च सर्वे परावरतत्त्व याथात्म्यविदः त्वाम् एव शाश्वतं दिव्यं पुरुषम् आदिदेवम् अजं विभुम् आहुः। तथा एव देवर्षिः नारदः असितो देवलो व्यासः च।

इसके अतिरिक्त श्रेष्ठ-निकृष्ट सम्पूर्ण तत्त्व को यथार्थ जानने वाले ऋषिगण भी आपको ही शाश्वत दिव्य पुरुष, अजन्मा, व्यापक तथा आदिदेव बतलाते हैं, वैसे ही देवर्षि नारद, असित, देवल और वेदव्यास भी कहते हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छा0 उ0 4/14/3
  2. छा0 उ0 5/24/3
  3. महाना0 9/4

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
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अध्याय 17 421
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