श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 226

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥27॥

तू जो कुछ करता है, जो कुछ खाता है, जो कुछ हवन करता है, जो कुछ देता है, जो कुछ तप करता है, हे अर्जुन! वह सब मेरे अर्पण कर ।।27।।

यत् देहयात्रादिशेषभूतं लौकिकं कर्म करोषि, यत् च देहधारणाय अश्नासि, यत् च वैदिकं होमदानतपः- प्रभृति नित्यनैमित्तिकं कर्म करोषि, तत् सर्व मदर्पणं कुरुष्व। अप्र्यत इति अर्पणम्, सर्वस्य लौकिकस्य वैदिकस्य च कर्मणः कर्तृत्वं भौक्तृत्वम् आराध्यत्वं च यथा मयि सर्व समर्पितं भवति तथा कुरु।

तू जो शरीर-यात्रा-निर्वाह के लिये आवश्यक लौकिक कर्म करता है, तथा जो शरीर-धारण के लिये भोजन करता है, एवं जो होम, दान, तप आदि वैदिक नित्य नैमित्तिक कर्म करता है, उन सबको मेरे अर्पण कर। जो अर्पित किया जाय, उसका नाम ‘अर्पण’ है। अतः लौकिक एवं वैदिक कर्म का जो कर्तापन, भोक्तापन और आराध्यत्व है, वह सब-का-सब जिस प्रकार मेरे अर्पित हो जाय, वैसे ही तू कर।

एतद् उक्तं भवति-यागदानादिषु आराध्यतया प्रतीयमानानां देवादीनां कर्मकर्तुः भोक्तुः तव च मदीयतया मत्संकल्पायत्तस्वरूपस्थिति प्रवृत्तितया च मयि एव परमशेषिणि परमकर्तरि त्वां च कर्तारं भोक्तारम् आराधकम् आराध्यं च देवताजातम् आराधनं च क्रियाजातं सर्व समर्पय। तब मन्नियाम्यता पूर्वकमच्छेषतैकरसताम् आराध्यादेः च एतत्स्वभावकगर्भताम् अत्यर्थः प्रीतियुक्तः अनुसन्धत्स्व इति।। 27।।

कहने का अभिप्राय यह है कि यज्ञ-दान आदि में आराध्य देव के रूप में प्रतीत होने वाले सब देवता आदि, और कर्म का कर्ता तथा भोक्ता तू भी, ये सब मेरे हैं; तथा सबके स्वरूप की स्थिति एवं प्रवृत्ति भी मेरे संकल्प के आधार पर है, इसलिये तू तुझ कर्ता आदि भोक्तारूप आराधक को, आराध्यरूप समस्त देवताओं को और आराधनारूप समस्त क्रियाओं को, इन सबको परमशेषी, परमकर्ता तुझ परमेश्वर में समर्पण कर। मुझमें अत्यन्त प्रीतियुक्त होकर यह अनुभव करता रह कि भगवान् ही मेरा नियामक और शेषी (स्वामी) है, उनकी अधीनता ही एकमात्र मेरा रस है और वे आराध्य देव आदि भी ऐसे ही स्वभाव ओत-प्रोत हैं।। 27।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः