श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
नवाँ अध्याय
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्नागतागतं कामकामा लभन्ते ॥21॥
वे उस विशाल स्वर्ग को भोगकर पुण्य के क्षीण होने पर पुनः मर्त्यलोक में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार केवल वेदत्रयी-प्रतिपादित धर्म के आश्रित और भोगों की कामना वाले मनुष्य आवागमन को प्राप्त होते हैं।। 21।।
ते तं विशालं स्वर्गलोकं भुक्त्वा तदनुभवहेतुभूते पुण्ये क्षीणे पुनरपि मर्त्यलोकं विशन्ति।
तथा वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर उन भोगों के कारण रूप पुण्यकर्मों का क्षय होने पर पुनः वापस मृत्युलोक में लौट आते हैं।
एवं त्रय्यन्तसिद्धज्ञानविधुराः काम्यस्यवर्गादिकामाः केवलं त्रयीधर्मम् अनुप्रपन्नाः गतागतं लभन्ते। अल्पास्थिर स्वर्गादीन् अनुभूय पुनः पुनः निवर्तन्ते इत्यर्थः।। 21।।
इस प्रकार वेदान्तप्रतिपादित ज्ञान से रहित और कमनीय स्वर्गादि भोगों की कामना वाले पुरुष केवल त्रिवेदविहित धर्म का आश्रय लेकर आवागमन को प्राप्त होते हैं। अभिप्राय यह है कि अल्प, अनित्य स्वर्गादि को भोगकर बार-बार वापस लौटते हैं।। 21।।
महात्मानः तु निरतिशयप्रियरूपं मच्चिन्तनं कृत्वा माम् अनवधिकातिशयानन्दं प्राप्य न पुनरावर्तन्ते इति तेषां विशेषं दर्शयति-
महात्मा भक्तजन निरतिशय प्रियरूप मेरा चिन्तन करके अपार अत्यन्त आनन्दस्वरूप मुझ परमेश्वर को पाकर वापस नहीं लौटते, यह कहकर उनकी विशेषता दिखलाते हैं-
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥22॥
जो अनन्य भक्त जन मुझे चिन्तन करते हुए भलीभाँति मेरी उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेप मैं वहन करता हूँ।। 22।।
अन्ययाः अनन्यप्रयोजना मच्चिन्तनेन विना आत्मधारणालाभात् मच्चिन्तनैकप्रयोजनाः मां चिन्तयन्तो ये महात्मानः जनाः पर्युपासते सर्व कल्याणगुणान्वितं सर्वविभूतियुक्तं मां परित उपासते अन्यूनम् उपासते तेषां नित्याभियुक्तानां मयि नित्याभियोगं काङ्क्षमाणानाम् अहं मत्प्राप्ति लक्षणं योगम् अपुनरावृत्तिरूपं क्षेमं च वहामि।। 22।।
मेरे चिन्तन के बिना शरीर धारण करने में असमर्थ होने के कारण केवल एक मेरा चिन्तन ही जिनका प्रयोजन है, ऐसे अन्य प्रयोजन से रहित जो महात्मा भक्तजन मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं- समस्त कल्याणमय गुणों से समन्वित और सम्पूर्ण विभूतियों से युक्त मुझ परमेश्वर की भली-भाँति सर्वांगपूर्ण उपासना करते हैं, उन निरन्तर मुझसे सम्बन्ध चाहने वाले भक्तों का मेरी प्राप्ति रूप योग और अपुनरावृत्ति रूप क्षेम मैं वहन करता हूँ।। 22।।
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