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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
दूसरा अध्याय
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा:।
न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत: परम् ॥12॥
क्योंकि न तो यह बात है कि मैं पहले कभी नहीं था या तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे, और न यही है कि हमलोग सब-के-सब अब से पीछे (भविष्य में) नहीं रहेंगे।।12।।
अहं सर्वेश्वरः तावद् अतो वर्तमानात पूर्वस्मिन् अनादौ काले न नासम् अपि तु आसम्। त्वन्मुखाः च एते ईशितव्याः क्षेत्रज्ञा न नासन् अपि त्वासन्। अहं च यूयं च सर्वे वयमतः परम् अस्माद् अनन्तरे काले न चैव न भविष्यामः अपि तु भविष्याम एव।
मैं सर्वेश्वर इस वर्तमान समय से पूर्व अनादि काल में नहीं था- ऐसा नहीं, किन्तु अवश्य था। मेरे शासन में रहने वाले तेरे सहित ये सभी क्षेत्रज्ञ (आत्मा) पहले नहीं थे, ऐसा नहीं, किंतु अवश्य थे। मैं और तुम लोग अर्थात हम लोग सभी इसके बाद भविष्यकाल में नहीं रहेंगे, ऐसा नहीं, किंतु अवश्य रहेंगे।
यथा अहं सर्वेश्वरः परमात्मा नित्य इति न अत्र संशयः, तथैव भवन्तः क्षेत्रज्ञा आत्मानः अपि नित्या एव इति मन्तव्याः।
जिस प्रकार मैं सर्वेश्वर परमात्मा नित्य हूँ- इसमें कुछ भी सन्देह नहीं, उसी प्रकार तुम सब क्षेत्रज्ञ आत्मागण भी निस्सन्देह नित्य हो, ऐसा समझना चाहिये।
एवं भगवतः सर्वेश्वरात् आत्मनां परस्परं च भेदः पारमार्थिकः, इति भगवता एव उक्तामिति प्रतीयते। अज्ञानमोहितं प्रति तन्निवृत्तये पारमार्थिकनित्यत्वोपदेशसमये ‘अहम्’ ‘त्वम्’ ‘इमे’ ‘सर्वे’ ‘स्वयम्’ इति व्यपदेशात्।
इस प्रकार जीवों का भगवान् सर्वेश्वर परमात्मा से, और (जीवों का) परस्पर में भी भेद यथार्थ है, यह स्वयं भगवान ने ही कहा है- ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि अज्ञान मोहित अर्जुन के प्रति उस अज्ञान की निवृत्ति के लिये पारमार्थिक नित्यता का उपदेश करते समय ‘मैं’ (अहम्), तुम (त्वम्), ये (इमे), सब (सर्वे) और हमलोग (वयम्) इन पदों का प्रयोग किया गया है।
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