श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 199

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
आठवाँ अध्याय

मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: ॥15॥

मुझे प्राप्त होकर परम संसिद्धि को पाये हुए महात्मा लोग दुःखों के घर रूप अनित्य पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते ।। 15।।

मां प्राप्य पुनः निखिलदुःखालयम् अस्थिरं जन्म न प्राप्नुवन्ति यत एते महात्मानः महामनसो यथाव स्थितमत्स्वरूपज्ञानाः अत्यर्थ मत्प्रियत्वेन मया विना आत्मसाधारणम् अलभमाना मयि आसक्तमनसो मदाश्रयाः माम् उपास्य परमसंसिद्धिरूपं मां प्राप्ताः।। 15।।

मुझको प्राप्त करके फिर समस्त दुःखों के स्थान रूप इस अनित्य जन्म को नहीं पाते। क्योंकि ये सब मेरे स्वरूप को यथार्थरूप से जानने वाले महात्मा हैं- महामना हैं, वे मुझमें अत्यन्त प्रेम होने के कारण मेरे बिना जीवन धारण करने में आसक्त है तथा मेरा आश्रय लेकर मेरी उपासना करके परमसिद्धिरूप मुझ परमेश्वर को प्राप्त हो चुके हैं।। 15।।

ऐश्वर्यगतिं प्राप्तानां भगवन्तं प्राप्तानां च पुनरावृत्तौ अपुनरावृत्तौ च हेतुम् अनन्तरम् आह-

ऐश्वर्य-गति को प्राप्त करने वालों का पुनरागमन होने में और भगवान को प्राप्त करने वालों का पुनरागमन न होने में दूसरा कारण भी बतलाते हैं-

आब्रह्मभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥16॥

अर्जुन! ब्रह्मभुवन से लेकर सभी लोक पुनरावृत्तिशील हैं। कुन्तीपुत्र! मुझे पा लेने के बाद पुनः जन्म नहीं होता ।। 16।।

ब्रह्मलोकपर्यन्ताः ब्रह्माण्डोदर वर्तिनः सर्वे लोकाः भोगैश्वर्यालयाः पुनरावर्तिनः विनाशिनः। अत ऐश्वर्यगतिं प्राप्तानां प्राप्यस्थान विनाशाद् विनाशित्वम् अवर्जनीयम्। मां सर्वज्ञं सत्यसंकल्पं निखिलजग दुत्पत्तिस्थितिलयलीलं परमकारुणिकं एदा एकरूपं प्राप्तानां विनाशप्रसंगाभावात् तेषां पुनर्जन्म न विद्यते।। 16।।

ब्रह्माण्ड के अन्दर रहने वाले ब्रह्मलोक पर्यन्त सभी लोक-भोग और ऐश्वर्य के स्थान पुनरावृत्तिशील- नाशवान् हैं। इसलिये ऐश्वर्यगति को प्राप्त पुरुषों के प्राप्य स्थान का विनाश होने से उनका भी विनाश अनिवार्य है। परंतु मैं जो कि सर्वज्ञ और सत्यसंकल्प हूँ, अखिल जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और लय जिसकी लीला है, ऐसे परम दयालु सदा एक रूप वाले मुझ परमेश्वर को प्राप्त भक्तों के विनाश का प्रसंग न होने के कारण उनका पुनर्जन्म नहीं होता।। 16।।

ब्रह्मलोकपर्यन्तानां लोकानां तदन्तर्वतिनां च परमपुरुषसंकल्पकृताम् उत्पत्तिविनाशकालव्यवस्थाम् आह- ब्रह्मलोक तक सभी लोकों की और उनके अन्दर रहने वाले जीवों की परमपुरुष के संकल्प से की जाने वाली उत्पत्ति और विनाश की कालव्यवस्था बतलाते हैं-

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः