श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
आठवाँ अध्याय
तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥7॥
इसलिये सब समयों में तू मुझको स्मरण कर और युद्ध कर। (इस प्रकार) मुझ में अर्पण किये हुए मन-बुद्धिवाला होकर तू निःसन्देह मुझको ही प्राप्त होगा।। 7।।
तस्मात् सर्वेषु कालेषु आप्रयाणाद् अहरहः माम् अनुस्मर अहरहः अनुस्मृतिकरं युद्धादिकं वर्णाश्रमानुबन्धि श्रुतिस्मृतिचोदितनित्यनैमित्तिकं च कर्म कुरु। एतदुपायेन मय्यर्पितमनो बुद्धिः अन्तकाले च माम् एव स्मरन् यथाभिलषितप्रकारं मां प्राप्स्यसि न अत्र संशयः ।। 7।।
अत एवं तू सब समय मृत्युकाल पर्यन्त प्रतिदिन मेरा स्मरण कर और प्रतिदिन मेरी स्मृति को उत्पन्न करने वाले वर्णाश्रम के अनुकूल श्रुति स्मृतिविहित युद्धादि नित्य-नैमित्तिक कर्म भी कर। इस उपाय से मन बुद्धि को मेरे अर्पण करके और अन्त काल में भी मेरा ही स्मरण करता हुआ तू अपने इष्टरूप मुझ परमेश्वर को ही पावेगा, इसमें सन्देह नहीं है।। 7।।
एवं सामान्येन सर्वत्र स्वप्राप्यावाप्तिः अन्त्यप्रत्ययाधीना इति उक्त्वा तदर्थं त्रयाणाम् उपासनप्रकारभेदं वक्तुम् उपक्रमते। तत्र ऐश्वर्यार्थिनाम् उपासन प्रकारं यथोपासनम् अन्त्य-प्रत्ययकारकं च आह-
इस प्रकार अपने इष्ट की प्राप्ति सब के लिये अन्तकाल की प्रतीति के अधीन है, यह बात साधारण रूप से बतलाकर उस अन्तिम प्रतीति के लिये तीनों प्रकार के भक्तों की उपासना के प्रकार भेद बतलाना आरम्भ करते हैं। उनमें पहले ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले भक्तों की उपासना का प्रकार और उपासना के अनुरूप अन्त में प्रतीति होने का प्रकार बतलाते हैं-
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