श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
आठवाँ अध्याय
भूतभावो मनुष्यादिभाव:,तदुद्भव- करो यो विसर्गः ‘पञ्चम्यामहातावापः पुरुषवचसो भवन्ति’ [1] इति श्रुतिसिद्धो योषित्सम्बन्धजः, स कर्मसञ्ज्ञितः तत् च अखिलं सानुबन्धनम् उद्वेजनीयतया परिहरणीयतया च मुमुक्षुभिः ज्ञातव्यम्। परिहरणीयता च अनन्तरम् एवं वक्ष्यते, ‘यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति [2] इति।। 3।।
मनुष्यादि भूतों की सत्ता का नाम भूतभाव है, उसको उत्पन्न करने वाला जो विसर्ग है यानी ‘पाँचवीं आहुति में जल ‘पुरुष’-वाची हो जाता है’ इस श्रुति से सिद्ध जो स्त्री-सम्बन्ध जनित विसर्ग (शुक्रत्याग) है, उसका नाम ‘कर्म’ है; उससे विरक्त होने के उद्देश्य से और उसको त्याज्य समझने के उद्देश्य से उसे मुमुक्षु पुरुषों को सारे अंगोपागों सहित पूर्णरूप से जानना चाहिये। यह त्याज्य है- यह बात इसी अध्याय में ‘यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति’ इस वाक्य से कहेंगे।। 3।।
अधिभूतं क्षरो भाव: पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥4॥
देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! नाशवान भाव अधिभूत है और पुरुष अधिदैवत है तथा इस शरीर में अधियज्ञ मैं ही हूँ।। 4।।
ऐश्वर्यार्थिनां ज्ञातव्यतया निर्दिष्टम् अधिभूतं क्षरो भावः वियदादिभूतेषु वर्तमानः तत्परिणाम विशेषः क्षरणस्वभावो विलक्षणः शब्दस्पर्शादिः साश्रयः, विलक्षणाः साश्रयाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः ऐश्वर्यार्थिभिः प्राप्याः, तैः अनुसन्धेया।
ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले भक्तों के लिये जानने योग्य बतलया हुआ- ‘अधिभूत’ क्षर भाव है। अर्थात आकाशादि भूतों में वर्तमान उनके कार्य विशेष, जो कि अपने आश्रयों सहित विलक्षण शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्धरूप क्षरणशील (विनाशी स्वभाव वाले) भाव हैं, उनका नाम ‘अधिभूत’ है। ये अपने आश्रयों सहित विलक्षण शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ऐश्वर्य की इच्छावाले पुरुषों को प्राप्त होने वाले हैं। अतः उनको इन्हें जानना चाहिये।
पुरुषश्च अधिदैवतम् अधिदैवत शब्दनिर्दिष्टः पुरुषः, अधिदैवतं दैवतोपरि वर्तमानम् इन्द्रप्रजापति प्रभृतिकृत्स्नदैवतोपरि वर्तमानः, इन्द्रप्रजापतिप्रभृतीनां भोग्यजाताद् विलक्षणशब्दादेः भोक्ता पुरुषः, सा च भोक्तृत्वावस्था ऐश्चर्यार्थिभिः प्राप्यतया अनुसन्धेया।
जिसका अधिदैव नाम से निर्देश किया गया है, वह पुरुष है। अभिप्राय यह है कि जो देवताओं के भी ऊपर है, वह ‘अधिदैव’ है। सो इन्द्र, प्रजापति आदि समस्त देवताओं से ऊपर वर्तमान और इन्द्र, प्रजापति आदि देवताओं के समस्त भोगों से विलक्षण शब्द-स्पर्शादि भोगों के भोक्ता पुरुष का नाम अधिदैव है। ऐसी भोक्तापन की अवस्था, ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले भक्तों के लिये प्राप्य रूप से जानने योग्य है।
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