श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
मध्यम षट्क
सातवाँ अध्याय
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥5॥
यह अपरा है। अब इससे दूसरी हे महाबाहो अर्जुन! तू मेरी जीवरूपा परा प्रकृति को जान, जिससे यह जगत धारण किया जाता है।। 5।।
इयं मम अपरा प्रकृतिः, इतः तु अन्याम् इतः अचेतनायाः चेतनभोग्य भूतायाः प्रकृतेः विसजातीयाकारां जीवभूतां परां तस्याः भोक्तृत्वेन प्रधानभूतां चेतनरूपां मदीयां प्रकृतिं विद्धि यया इदम् अचेतनं कृत्स्त्रं जगद् धार्यते।। 5।।
यह मेरी अपरा प्रकृति है। इससे दूसरी यानी जिसका स्वरूप चेतन की भोग्यरूपा इस जड प्रकृति से विलक्षण है और जो इस जड प्रकृति की भोक्त्री होने के कारण प्रधानरूप है उसकी उसको तू मेरी जीवनामक चेतनरूप परा प्रकृति समझ, जिसने कि वह समूचे जड जगत को धारण कर रखा है।। 5।।
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा ॥6॥
ऐसा जान कि सम्पूर्ण भूतप्राणी इन्हीं दोनों योनियों वाले हैं, (मेरी ये प्रकृति ही सबकी कारण हैं) अतः मैं इस समूचे जगत् की उत्पत्ति और प्रलय का स्थान हूँ ।। 6।।
एतच्चेतनाचेतनसमष्टिरूपमदीय प्रकृतिद्वययोनीनि ब्रह्मादिस्तम्ब पर्यन्तिानि उच्चावचभावेन अवस्थितानि चिदचिन्मिश्राणि सर्वाणि भूतानि मदीयानि इति उपधारय, मदीय प्रकृतिद्वययोनीति हि तानि मदीयानि एव। तथा प्रकृतिद्वययोनित्वेन कृत्स्त्रस्य जगतः, तयोः द्वयोः अपि मद्योनित्वेन मदीयत्वेन च कृत्स्त्रस्य जगतः अहम् एव प्रभवः अहम् एव प्रलयः अहम् एव च शेषी इति उपधारय।
ऊँचे-नीचे भाव में स्थित ब्रह्मा से लेकर स्तम्बपर्यन्त जड-चेतन-मिश्रित समस्त प्राणियों का कारण यह मेरी जड और चेतन समष्टिरूप दोनों प्रकृतियाँ ही हैं। अतः ये सब (प्राणी) मेरे हैं, तू ऐसा समझ क्योंकि ये मेरी दोनों प्रकृतियों से उत्पन्न होने वाले हैं, अतः मेरे ही हैं। तथा दोनों प्रकृतियाँ समूचे जगत् का कारण हैं, तथा उन दोनों प्रकृतियों का भी मैं कारण हूँ और वे मेरी हैं, इसलिये समूचे जगत् का मैं ही प्रभव हूँ, मैं ही प्रलय हूँ, तथा मैं ही शेषी (स्वामी) हूँ, ऐसा समझ।
तयोः चिदचित्समष्टिभूतयोः प्रकृतिपुरुषयोः अपि परमपुरुष योनित्वं श्रुतिस्मृतिसिद्धम्। ‘महानव्यक्ते लीयते अव्यक्तमक्षरे लीयते अक्षरं तमसि लीयते तमः परेदेव एकीभवति’ [1]‘विष्णोः स्वरूपात्परतोदिते द्वे रूपे प्रधानं पुरुषश्च’ [2] ‘प्रकृतिर्या मखाऽऽख्याता व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी। पुरुषश्चाप्युभावेतौ लीयेते परमात्मनि।। परमात्मा च सर्वेषामाधारः परमेश्वरः। विष्णुनामा स वेदेषु वेदान्तेषु च गीयते।।’[3] इत्यादिकाहि श्रुतिस्मृतयः।। 6।।
उन समष्टिरूप जड-चेतन प्रकृति और पुरुष का कारण परमपुरुष है। यह बात श्रुति-स्मृति से सिद्ध है। उदाहरणतः ‘महत्तत्त्व अव्यक्त में लीन होता है, अव्यक्त अक्षर में लीन होता है, अक्षर तम में लीन होता है, तम परमपुरुष में एक हो जाता है।’ ‘ ब्रह्मन्! विष्णु के स्वरूप से फिर दो रूप प्रकट हुए- एक प्रधान (जड प्रकृति) और दूसरा पुरुष (चेतन प्रकृति)’ ‘ जो मेरे द्वारा बतलायी हुई व्यक्त और अव्यक्तरूपा प्रकृति है, वह और पुरुष- ये दोनों ही परमात्मा में लीन हो जाते हैं। परमात्मा परम ईश्वर सब का आधार है। वह वेद और वेदान्तों में विष्णु नाम से गाया जाता है’ इत्यादि श्रुति-स्मृतियाँ हैं।। 6।।
|