श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 171

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य

मध्यम षट्क
सातवाँ अध्याय

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: ॥3॥

सहस्रों मनुष्यों में कोई एक ही सिद्धिपर्यन्त यत्न करता है और सिद्धिपर्यन्त यत्न करने वाले पुरुषों में भी कोई एक ही मुझे तत्त्व से जानता है।। 3।।

मनुष्याः शास्त्राधिकारयोग्याः तेषां सहस्रेषु कश्चिद् एव सिद्धि पर्यन्तं यतते। सिद्धिपर्यन्तं यतमानानां सहस्रेषु कश्चिद् एव मां विदित्वा मत्तः सिद्धये यतते। मद्विदां सहस्रेषु तत्त्वतो यथावत्स्थितं मां वेत्ति न कश्चिद् इति अभिप्रायः। ‘स महात्मा सुदुर्लभः’ [1] ‘मां तु वेद न कश्चन’[2] इति हि वक्ष्यते।। 3।।

जिनका शास्त्र में अधिकार है, वे ही मनुष्य हैं ऐसे सहस्रों मनुष्यों में कोई ही सिद्धि की प्राप्ति तक यत्न करता है। सिद्धि प्राप्त होने तक यत्न करने वाले सहस्रों मनुष्यों में से कोई ही मुझे जानकर मुझसे सिद्धि पाने के लिये यत्न करता है। मुझको जानने वाले सहस्रों में कोई ही मुझ परमेश्वर को तत्त्व से- यथार्थ स्वरूप से जानता है। अभिप्राय यह कि कोई भी नहीं (जानता)। क्योंकि ‘स महात्मा सुदुर्लभः’ ’मां तु वेद न कश्चन’ यह आगे कहेंगे।। 3।।

भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥4॥

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार- यह आठ प्रकार की प्रकृति मेरी है।।4।।

अस्य विचित्रानन्तभोग्यभोगोप करणभोगस्थानरूपेण अवस्थितस्य जगतः प्रकृतिः इयं गन्धादिगुणक पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशादिरूपेण मनः प्रभृतीन्द्रियरूपेण च महदहंकारूपेण च अष्टधा भिन्ना मदीया इति विद्धि।। 4।।

इस विचित्र अनन्त भोग्य (भोग्य पदार्थों), भोगों के साधनों और भोगस्थानों के रूप में स्थित जगत् की कारण रूपा यह प्रकृति, गन्ध आदि गुणों वाले पृथ्वी, जल, तेज, वायु आकाश के रूप में तथा मन आदि इन्द्रियों के रूप में और महत्तत्त्व एवं अहंकार के रूप में- इस प्रकार आठ भेदों में विभक्त है- इसको तू मेरी समझ।। 4।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 7/19
  2. 7/26

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः