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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
छठा अध्याय
मां विचित्रानन्तभोग्यभोग्यभोक्तृवर्गभोगोपकरणभोगस्थानपरिपूर्णनिखिलजगदुदयविभलयलीलम् अस्पृष्टाशेषदोषानवधिकातिशयज्ञानबलैश्चर्यवीर्यशक्तितेजः प्रभृत्यसङ्ख्येयकल्याणगुणगणनिधिं स्वाभिमतानुरूपैकरूपाचिन्त्यदिव्याद्धुतनित्यनिरवद्यनिरतिशयौज्वल्यसौन्दर्यसौगध्यसौकुमार्यलावण्ययौवनाद्यनन्तगुणनिधिदिव्यरूपं वाङ्मनसापरिच्छेद्य स्वरूपस्वभावम् अपारकारुण्य सौशीत्यवात्सल्यौदार्यैश्वर्यमहोदधिम् अनालोचितविशेषाशेषलोकशरण्यंप्रणतार्तिहरम् आश्वितवात्सल्यैक जलधिम् अखिलमनुजनयन विषयतां गतम् अजहत्स्वभावं वसुदेवगृहे अवतीर्णम् अनवधिकातिशयतेजसा निखिलं जगद्भासयन्तम् आत्मकान्त्या विश्वम् आप्यायन्तं भजते, सेवते उपास्ते इत्यर्थः। स मे युक्ततमो मतः, स सर्वेभ्यः श्रेष्ठतम इति सर्व सर्वदा यथावस्थितं स्वत एव साक्षात्कुर्वन् अहं मन्ये।।47।।
कहने का अभिप्राय यह कि विचित्र अनन्त भोग्य पदार्थ, भोक्तृवर्ग, भोग साधन और भोगस्थानों से परिपूर्ण निखिल जगत् का उद्भव, पालन और संहार मेरी लीला है, सम्पूर्ण दोषों के स्पर्श से रहित असीम अतिशय ज्ञान, बल ऐश्वर्य, वीर्य, शक्ति और तेज प्रभृति असंख्य कल्याण मय गुण समूहों का मैं भण्डार हूँ; मेरा दिव्य श्रीविग्रह स्वेच्छानुरूप सदा एक रस अचिन्त्य दिव्य अद्धभुत नित्य निर्मल निरतिशय औज्ज्वल्य, सौन्दर्य, सौगन्ध्य, सौकुमार्य, लावण्य और यौवनादि अनन्त गुणों का आगार है; मेरा स्वरूप और स्वभाव मन-वाणी से अगोचर है, ऐसा मैं अपार कारुण्य, सौशील्य, वात्सल्य, औदार्य और ऐश्वर्य का महान् समुद्र हूँ; भेदभाव का विचार किये बिना ही समस्त लोकों को शरण देने वाला हूँ; शरणागतों के दुःखों को हरण करने वाला हूँ; आश्रितजनों के लिये वात्सल्य का एक मात्र समुद्र हूँ; मैं अपने स्वभाव को न छोड़ते हुए ही वसुदेव जी के घर में अवतीर्ण होकर समस्त मनुष्यों के नेत्रों का विषय बना हूँ और अपने अपरिमित अतिशय तेज से अखिल जगत् को प्रकाशित कर रहा हूँ- अपनी कान्ति से विश्व को आप्यायित कर रहा हूँ, ऐसे मुझ परमेश्वर को जो भजता है- मेरी सेवा अर्थात् उपसाना करता है, वह मुझे युक्ततम मान्य है- वह योगी सबकी अपेक्षा अत्यन्त श्रेष्ठ है, यह बात मैं, जो सबको सब समय यथार्थ स्थिति में अपने-आप ही साक्षात् करने वाला हूँ, वह स्वयं मानता हूँ।। 47।।
इति श्रीमद्धगवद्रामानुजाचार्य विरचिते श्रीमद्धगतद्वीताभाष्ये षष्ठोअध्यायः।। 6।।
इस प्रकार श्रीमान् भगवान रामानुजाचार्य द्वारा रचित श्रीमद्धगवद्वीता भाष्य के हिन्दी- भाषानुवाद का छठा अध्याय पूरा हुआ।।6।।
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