श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पहला अध्याय
स तु पार्थो महामनाः परमकारुणिको दीर्घबन्धुः परमधार्मिकः सभ्रातृको भवद्धिः अतिघौरैः मारणैः जतुगृहादिभिः असकृद्वञ्चितः अपि परमपुरुषसहायः अपि हनिष्यमाणान् भवदीयान् विलोक्य बन्धुस्त्रेहेन परमया च कृपया धर्माधर्मभयेन च अतिमात्रस्विन्नसर्वगात्रः सर्वथा अहं न योत्स्यामि इति उक्त्वा बन्धुविश्लेषजनितशोकसंविग्नमानसः सशरं चापं विसृज्य रथोपस्थे उपाविशत्।। 26-47।।
वह महामना परमदयालु, परमबन्धुस्नेही, परमधार्मिक अर्जुन अपने भाइयों सहित यद्यपि आप लोगों के द्वारा लाक्षागृह आदि अनेक अत्यन्त घोर मृत्युजनक उपायों से बार-बार धोखा खा चुका है और परमपुरुष (भगवान श्रीकृष्ण)- की सहायता भी उसे प्राप्त है; तथापि आपके पुत्रों के मारे जाने का संयोग देखकर बन्धुस्नेह, परमकृपा और धर्माधर्म के भय से उसके सारे अंग पसीने से भर गये है और ‘मैं किसी तरह भी युद्ध नहीं करूँगा’ ऐसा कहकर वह (भावी) बन्धुवियोगजनित शोक से खिन्नमन हो बाणों सहित धनुष को छोड़ कर रथ पर बैठा गया ।। 26-47।।
इति श्रीमद्भागवद्रामानुजाचार्यविरचिते श्रीमद्भगवगीताभाष्ये प्रथमोऽध्यायः ।। 1।।
इस प्रकार श्रीमान भगवान रामानुचार्य द्वारा रचित श्रीमद्भगवगीता-भाष्य के हिन्दी भाषानुवाद का पहला अध्याय समाप्त हुआ ।। 1।।
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