श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पहला अध्याय
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: ।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥46॥
यदि मुझ न सामना करने वाले और शस्त्ररहित को ये शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मेरे लिये अधिक कल्याणकर होगा ।।46।।
एवमुक्त्वार्जुन: संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: ॥47॥
संजय बोले- रणांगण में इस प्रकार कहकर शोक में निमग्न मन वाला अर्जुन बाणसहित धनुष का परित्याग करके रथ के पिछले भाग में बैठ गया ।। 47।।
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवतगीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां
योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषाद योगो
नाम प्रथमोऽध्यायः।।1।।
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