श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 130

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पाँचवाँ अध्याय

सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥6॥

परन्तु अर्जुन! कर्मयोग के बिना संन्यास का पाना कठिन है और कर्मयोगयुक्त मुनि ब्रह्म को शीघ्र प्राप्त हो जाता है।। 6।।

सन्न्यासः ज्ञानयोगः तु अयोगतः कर्मयोगाद् ऋते प्राप्तुम् अशक्यः। योगयुक्तः कर्मयोगयुक्तः स्वयम् एव मुनिः आत्ममननशीलः सुखेन कर्मयोगं साधयित्वा नचिरेण एव अल्पकालेन एव ब्रह्म अधिगच्छति, आत्मानं प्राप्नोति। ज्ञानयोगयुक्तः तु महता दुःखेन ज्ञानयोगं साधयति, दुःख साध्यत्वाद् दुःखप्राप्यत्वाद् आत्मानं चिरेण प्रप्नोति इत्यर्थः।। 6।।

संन्यास-ज्ञानयोग तो अयोगतः- कर्मयोग के बिना प्राप्त नहीं हो सकता, परन्तु योगयुक्त-कर्मयोग में लगा हुआ मुनि- आत्ममननशील पुरुष स्वयं ही आसानी के साथ कर्मयोग का सम्पादन करके अविलम्ब-अल्प समय में ही ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है- आत्मा को प्राप्त कर लेता है। ज्ञानयोग में लगा हुआ पुरुष बड़ी कठिनता से ज्ञानयोग का सम्पादन कर पाता है। भाव यह है कि ज्ञानयोग कष्टसाध्य होने के कारण और कठिनता से प्राप्त होने वाला होने के कारण (उसके द्वारा) साधक बहुत समय के बाद आत्मा को प्राप्त होता है।। 6।।

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: ।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥7॥

कर्मयोग से युक्त विशुद्धात्मा, मन पर विजय पाया हुआ, इन्द्रियविजयी, समस्त भूतप्राणियों के आत्मा को अपना आत्मा समझने वाला पुरुष (परमपुरुष की आराधनारूप विशुद्ध) कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता ।। 7।।

कर्मयोगयुक्तः तु शास्त्रीये परम पुरुषाधानरूपे विशुद्धे कर्माणि वर्तमानः, तेन विशुद्धमनाः विजितात्मा स्वाभ्यस्ते कर्मणि व्याप्तमनस्त्वेन सुखेन विजितमनाः तत एव जितेन्द्रियः; कर्तुः आत्मनो याथात्म्यानुसन्धाननिष्ठतया सर्वभूतात्मभूतात्मा।

कर्मयोगयुक्त साधक परमपुरुष की आराधनारूप शास्त्रीय विशुद्ध कर्मों में लगा रहता है, इससे जिसका मन विशुद्ध हो गया है, जो मन पर विजय पा चुका है- अपने अभ्यस्त कर्मों में हृदय से लगा रहने के कारण जिसका मन आसानी के साथ जीता हुआ है, इसी कारण जो इन्द्रियविजयी है और कर्ता आत्मा के यथार्थ स्वरूपज्ञान में परिनिष्ठित होने के कारण जो ‘सर्वभूतात्मभूतात्मा’ है,

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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