श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौथा अध्याय
तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मन: ।
छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥42॥
इसलिये अज्ञान से उत्पन्न हृदय में स्थित इस संशय को आत्मज्ञान रूप खड्ग के द्वारा काटकर हे भारत! (तू) कर्मयोग में लग जा और उठ खड़ा हो।। 42।।
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां
योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानकर्मसन्न्यासयोगो
नम चतुर्थोऽध्यायः।। 4।।
तस्माद् अनाद्यज्ञानासम्भूतं हृत्स्थम्। आत्मविषयं संशयं मया उपदिष्टेन आत्मज्ञानासिना छित्वा मया उपदिष्टं कर्मयोगम् आतिष्ठ तदर्थम् उत्तिष्ठ भारत इति।। 42।।
इसलिये अनादि अज्ञान से उत्पन्न और हृदय में स्थित आत्मविषयक संशय को मेरे द्वारा उपदेश किये हुए आत्मज्ञान रूप तलवार से काटकर मेरे द्वारा उपदिष्ट कर्मयोग में स्थिर हो और भारत! उसके लिये (उठकर) खड़ा हो जा।। 42।।
इति श्रीमद्भगवद्रामानुजाचार्य विरचिते श्रीमद्भगदगीताभाष्ये चतुर्थोऽध्यायः।।4।।
इस प्रकार श्रीमान् भगवान् रामानुजाचार्य द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता-भाष्य के हिन्दी-भाषानुवाद का चौथा अध्याय पूरा हुआ।।4।।
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