श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 121

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौथा अध्याय

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञ: परंतप ।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥33॥

परन्तप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है। पार्थ! सब कर्म पूर्णतया ज्ञान में समाप्त होते हैं।। 33।।

उभयाकारे कर्मणि द्रव्यमयाद् अंशाद् ज्ञानमयः अंशः श्रेयान्। सर्वस्य कर्मणः तदितरस्य च अखिलस्य उपादेयस्य जाने परिसमाप्यते।

ज्ञान और द्रव्य इन दोनों आकार वाले कर्मों में द्रव्यमय अंश की अपेक्षा ज्ञानमय अंश ही श्रेष्ठ है; क्योंकि समस्त कर्म और उससे अन्य जो कुछ भी उपादेय है, वह सब-का-सब ज्ञान में समाप्त हो जाता है।

तद् एवं सर्वैः साधनैः प्राप्यभूतं ज्ञानं कर्मान्तर्गतत्त्वेन अभ्यस्ते। तद् एव हि अभ्यस्यमानं क्रमेण प्राप्यदशां प्रतिपद्यते।। 33।।

इस प्रकार समस्त साधनों से प्राप्त होने वाले उस ज्ञान को कर्मों के अन्तर्गत मानकर जब उसका अभ्यास किया जाता है तब वह ज्ञान अभ्यास करते करते क्रमशः प्राप्त होने योग्य दशा में आ जाता है।। 33।।

तद्विद्वि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: ॥34॥

उस ज्ञान को तू (तत्त्वदर्शी ज्ञानियों से) सीख। वे तत्त्वदर्शी ज्ञानी दण्डवत् प्रणाम करने से, (जिज्ञासुभाव से) प्रश्न करने से और सेवा करने से तुझे उसका उपदेश करेंगे।।34।।

तद् आत्मविषयं ज्ञानम्’ अविनाशि तु तद् विद्धि’[1] इति आरभ्य ‘एषा तेअभिहिता’ [2] इत्यन्तेन मया उपदिष्टम् मदुक्तकर्मणि वर्तमानः त्वं विपाकानुगुणं काले प्रणिपातपरिप्रश्नसेवाभिः विशदाकारं ज्ञानिभ्यो विद्धि।

‘अविनाशि तु तद् विद्धि’ यहाँ से लेकर ‘एषा तेऽभिहिता’ यहाँ तक जिस ज्ञान का मेरे द्वारा उपदेश किया गया है, उस आत्मविषयक ज्ञान को तुझे, मेरे बतलाये हुए कर्मों को करते-करते उस ज्ञान के परिपक्व होने का योग्य समय आने पर प्रणाम, प्रश्न और सेवा करके ज्ञानी पुरुषों से विस्तार पूर्वक जानना चाहिये।

साक्षात्कृतात्मस्वरूपाः तु ज्ञानिनः प्राणिपातादिभिः सेविताः ज्ञानबुभुत्सया परितः पृच्छतः तव आशयम् आलक्ष्य ज्ञानम् उपदेक्ष्यन्ति।।34।।

वे आत्मस्वरूप का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानीजन प्रणामादि के द्वारा सेवा की जाने पर, ज्ञान की जिज्ञासा से भलीभाँति प्रश्न करते ही, तेरा आशय समझकर (तेरी सच्ची जिज्ञासा जानकर) तुझे ज्ञान का उपदेश करेंगे।। 34।।

आत्मयाथात्म्यविषयसाक्षात्काररूपस्य लक्षणम् आह-

आत्मा के यथार्थ स्वरूप विषयक साक्षात्काररूप ज्ञान के लक्षण बतलाते हैं-

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 2/17
  2. गीता 2/39

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः